कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली :-
कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली, history of raja bhoj in hindi
कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली .…. ये कहावत बहुत पुरानी है और सभी के लिए जानी पहचनी भी । इस कहावत मे ये तो साफ़ है कि राजा भोज की किसी से तुलना की जा रही है ,और हम सब यही समझते हैं कि "गंगू तेली " कोई गरीब तेल बेचने वाला तेली होगा जिसका नाम गंगू था …..
लेकिन आज हम आपको बताएँगे की आखिर गंगू तेली थे कौन ,और आखिर कैसे और क्यों पड़ी ये कहावत ।
इतिहास हमे बताता है की राजा भोज का जन्म मालवा प्रदेश कि ऐतिहासिक नगरी उज्जैन मे सन 980 मे महाराजा सिंधु के घर हुआ था और वो बचपन से ही मेधावी और प्रतापी थे ,जिस वजह से उन्होंने कई विद्याओं मे पारंगत हासिल की थी और क्योंकि राजा भोज माँ सरस्वती के बहुत बड़े उपासक थे इसलिए वे अपना अधिकतर समय कलात्मक और रचनात्मक कार्यों में व्यतीत करते थे ,किन्तु जब उनके पिता की अकाल मृत्यु हुई तो सन 1010 में उन्हें राज पाट सौप दिया गया । उसके बाद राजा भोज ने अपने राजकाल में संस्कृति और कला को बढ़ावा देते हुए नगर संस्कृति विकसित की जिस में उज्जैन ,धार ,विदिशा और भोजपुर नगरी जैसे नगरों का सौन्दर्यकरण,नवीनीकरण और विस्तार किया ।
जिस समय वह अपने साम्राज्य का विस्तार कर रहे थे उसी समय दक्षिण के कलचुरि साम्राज्य के राजा "गंगेय" और चालुक्य साम्राज्य के राजा "तैलंग" ने मिलकर राजा भोज के विरुद्ध षड़यंत्र रचते हुए राजा भोज की धार नगरी पर आक्रमण किया ,किन्तु महाप्रतापी राजा भोज से युद्ध मे हार गए ,जिसके बाद धार नगरी के लोगों ने मज़ाक बनाते हुए ये कहा की "कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगये तैलंग " जो बदलते बदलते गंगये से गंगू और तैलंग से तेली होता होता गंगू तेली बन गया ।
और इस तरह एक युद्ध से जन्म हुआ एक सुप्रसिद्ध कहावत का "कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली "।
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