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chandausi city

चन्दौसी का इतिहास chandausi . Distt Sambhal. U.P.

चन्दौसी का इतिहास काफी समृद्ध है । बताया जाता है की प्राचीनकाल में चन्दौसी कोई  बसा बसाया शहर न हो कर सिर्फ छोटी सी बस्ती थी और यहाँ से होकर गुजरने वाला रास्ता एक प्रमुख मार्ग के तौर पर इस्तेमाल होता था। चन्दौसी अस्तित्व में तब आया जब रुहेलखण्ड स्थापित हुआ और रुहेला सरदार इब्राहिम ने इस बस्ती को स्थिर और पक्की बस्ती का रूप देकर अपनी पत्नी चाँद खानम के नाम पर चांदसी नाम दिया जो बेहद खूबसूरत हुआ करती थीं। इस तरह एक अस्थिर बस्ती को स्थायी रूप दिया गया और उसे बसाने के साथ -साथ सुरक्षित भी किया जिसमें इसके चारों  तरफ आठ द्वार जिन के नाम हैं बिसौली गेट,मुरादाबाद गेट,कैथल गेट,खुर्जा गेट,संभल गेट,जारई गेट, खेड़ा गेट और सीकरी गेट बनवाए और सब तरफ खाई भी खुदवाई थी। इसके बाद चन्दौसी एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र के रूप में  स्थापित हो गया।

इस दौरान मुग़ल शासन पतन पर था और रुहेलखण्ड व्यवस्थित और समृद्ध था और आसपास के व्यापारी चन्दौसी आकर बस गए जिसमें  कई क्षेत्रों  के वैश्य, ब्राह्मण ,मारवाड़ी लोगों के आलावा शिल्पी कारीगर शामिल थे। इस वजह से यहाँ के व्यापार और हस्त कला व्यापार में  बहुत प्रगति हुई और चन्दौसी एक बस्ती से एक समृद्ध और प्रमुख व्यापारिक केंद्र वाला शहर बन चुका था। अब नज़ारा यह था की यहाँ हर तरह का व्यापार खूब फल फूल रहा था। जिसमें  फड़ियाई बाजार, ब्रह्म बाजार, फरूखाबादी बाजार,पसरट्टा,कसेरठ और नमक मंडी आदि प्रमुख बाजार थे। यहाँ के कुछ और प्रमुख और पुराने बाज़ार हैं बजाजा,पाटिया,घास मंडी, बड़े हलवाई, फब्बारा चौक और घंटाघर। बिसौली गेट के पास जहाँ पैठ लगा करती थी वह जगह आगे चलकर पुरानी पैठ कहलाने लगी। आज के समय में चन्दौसी एक मिली जुली आबादी वाला छोटा सा शहर है।

चन्दौसी के प्रमुख व्यापार थे कपास, खांड़सारी, घी, गेहूं  और सन। यहाँ पर कई बड़ी बड़ी कताई मिलें थीं। इसी समय के आसपास मराठाओं की सेनाएं रुहेलों को हराते हुए मुरादाबाद पहुंच गयी थीं और चन्दौसी की समृद्धि देखकर वह चन्दौसी की तरफ मुड़ गए और इस जगह को खूब लूटा जिससे यहाँ की व्यापार व्यवस्था को काफी नुकसान पंहुचा,यह समय था करीब 1772  का। उसके बाद सन 1774 में  एक बार फिर एक और आक्रमणकारी नवाब शुजाउद्दौला ने रुहेलखण्ड का रुख किया और रुहेलों को युद्ध में हरा कर अपने अधिकारियों के साथ यहाँ की जगहों को खूब लूटा और नुकसान पहुंचाया लेकिन इतनी क्षति के बाद भी कुछ बड़े और कुशल व्यापारियों ने इन विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए एक बार फिर यहाँ के बाजार और व्यापार को कड़ी मेहनत के साथ कई वर्ष लगा कर स्थापित किया। इस सबके बाद 18 वीं शताब्दी के अंत तक  अंग्रेज़ों का रुहेलखण्ड पर राज हो गया। और सन 1857 की  क्रांति के बाद अंग्रेज़ों का ध्यान चन्दौसी की तरफ गया क्योंकि  उन्हे अपनी कपड़ा मिलों के लिए कपास और सेना के लिए घी और गेहूं की आवश्यकता थी, और चन्दौसी अपनी इन्ही चीज़ों के व्यापार  के लिए प्रसिद्ध था तो अपनी ज़रूरतों को आसानी से पूरा करने के लिए अंग्रेज़ों ने चन्दौसी को एक मुख्य शहर के रूप मे बसाया ताकि कच्चा सामान आसानी से लाया ले जाया जा सके इसलिए रेल पटरी और जंक्शन भी बनाया। आज चन्दौसी से देश के हर प्रमुख शहर के लिए रेल सेवा उपलब्ध है।

यहाँ पर रेलवे के उत्तरी जोन का एक मात्र ट्रेनिंग कॉलेज है जहाँ पूरे ज़ोन से प्रशिक्छु ट्रेनिंग करने आते हैं। यही वजह थी कि एक बार फिर चन्दौसी का व्यापार स्तर बढ़ गया और यहाँ से दूर दूर तक कच्चा सामान आयात निर्यात होने लगा। आज के समय में  भी चन्दौसी में  कपड़े का काम सबसे ज़्यादा होता है। यहाँ मैंथा  का काम बड़े पैमाने पर किया जाता है, लेकिन इसके अलावा यहाँ कई और चीज़े भी हैं जिनके लिए आसपास की  जगहों के लोग चन्दौसी आना पसंद करते हैं जैसे यहाँ के मंदिर, 15 दिवसीय गणेश चौथ मेला और कई तरह की मिठाइयां और नमकीन और एक और चीज़ है यहाँ की  गलियों मे सुबह से शाम तक मिलने वाला तरह तरह का गरम नाश्ता जैसे गरमा गरम समोसे, खस्ता कचौड़ी के साथ चटपटी आलू सब्जी, चाट,चटपटी दाल,चने और भुने चटपटे आलू का पत्ता आदि जिनका स्वाद अनोखा होता है। यहाँ की तिल की  मिठाई गजक,रेवड़ी आदि दूर दूर तक मशहूर है। 
  

चन्दौसी का मुख्य कालेज है ऐस एम कालेज जिसका कि गौरवशाली इतिहास है। इस कालेज को रोहिलखण्ड क्षेत्र के एक बड़े साहूकार स्व-श्याम सुन्दर जी की याद मे उनकी पत्नी श्रीमती रामकली ने सन 1908  मे स्थापित किया था। कहा जाता है कि उनके यहाँ कई हाथी पलते थे, और जिस जगह हाथी पलते थे उस जगह का नाम आज भी मोहल्ला हाथीखाना कहलाता है। कहा जाता है कि उनमे से जो सबसे ऊँचा हाथी था उसको एक अँग्रेज़ प्रशासक ने उनसे खरीदने का प्रस्ताव किया तो उन्होंने कहा कि हम बेचेंगे तो नहीं आपको दान में दे सकते हैं। उस अँगरेज़ ने हाथी न तो खरीदा न ही दान में लिया बल्कि उनकी उदारता से प्रभावित होकर उनको शासन से रानी के नाम से सुशोभित करवाया। तभी से वे रानी रामकली के नाम से मशहूर हो गयीं। इस उदारमना विदुषी नारी ने कालेज बनवाने मे पानी की  तरह पैसा बहाया। कुछ ही समय मे यह कालेज रोहिलखण्ड क्षेत्र की  शिक्षा का शीर्ष केंद्र बन गया था जहाँ आसपास के शहरों के छात्र पढ़ने आते थे। छात्रों की  सुविधा हेतु दो बड़े हॉस्टल (हैली हॉस्टल तथा टी आर के हॉस्टल) बनवाये गए थे।  पूरे कालेज की  इमारत खासकर उपरोक्त दोनों हॉस्टल्स की स्थापत्य कला देखते ही बनती है। यह कालेज चन्दौसी की बहुमूल्य  ऐतिहासिक धरोहर है। इस शहर के लोग धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बड़ा महत्व देते हैं और बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।    

 

सन्दर्भ :Rohilkhand itihas evam sanskriti by - Giriraj Nandan

and Locals of Chandausi

        Rajeev Kumar

        Dr. Suresh Chandra Agrawal

        Kusum Agrawal

        Girija Agrawal

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