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इस मंदिर मे बना है मोक्ष का द्वार,(dwarkadhish mandir,gujrat)

इस मंदिर मे बना है मोक्ष का द्वार,(dwarkadhish mandir,gujrat)

हमारे भारत की प्राचीन निर्माण शैली काफी विकसित थीं  जिनके सुन्दर उदाहरण आज भी भारत के  अलग अलग स्थानों पर  मौजूद हैं जिन्हे देख कर आज के  आर्किटेक्टस   और इतिहासकार भौचक्के रह जाते हैं की आखिर उस समय मे जब ये माना  जाता है कि इतने संसाधन और सुविधाएं नहीं थीं  तो  आखिर कैसे उस समय के  लोगों ने इतने सुन्दर,मजबूत और बारीक कारीगरी वाले भवन और मंदिरों का निर्माण किया !

 तो इस सवाल का जवाब भी हमें इतिहासकारों से मिलता है जिनके अनुसार प्राचीन भारत में मुख्यता  दो तरह  कि निर्माण शैलियाँ थीं 

पहली थी उत्तर भारत की नागरा शैली और दूसरी थी दक्षिण भारत की द्रविड़  शैली।

नागरा  शैली की बात करें  तो इस का सुन्दर उदाहरण  गुजरात की द्वारकाधीश  नगर में बना द्वारकाधीश मंदिर है जिस की स्थापत्य तिथि की  कोई सटीक जानकारी तो  नहीं है लेकिन पुरातत्व विभाग की खोज की अनुसार ये मंदिर 2000  से 2500  साल पुराना है। इसके अलावा इस मंदिर के  स्थापत्य को लेकर एक पौराणिक कहानी ये भी है की भगवान श्री कृष्ण जी ने मथुरा छोड़ कर द्वारका  नगरी बसाई थी और फिर किसी कारण द्वारका नगरी पानी में डूब  कर नष्ट हो गयी जिसके बाद उनके परपोते वज्रनाभ  ने उनको समर्पित गोमती नदी के  किनारे एक मंदिर का निर्माण करवाया जिसका नाम द्वारकाधीश मंदिर पड़ा  जिस का मतलब होता है द्वारका का राजा और यहाँ के  लोग आज भी कृष्ण जी को द्वारिका के  राजा के  रूप में ही पूजते हैं।

यह मंदिर जितना धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है उतनी  ही महत्वपूर्ण और खूबसूरत इसकी बनावट है, जो की  नागरा शैली पर आधारित है।

अब इससे पहले की हम  आपको इसकी बनावट की बारीकियों के  बारे में बताएँ  आइये पहले जानते हैं क्या है नागरा शैली।

नागर शब्द  नगर से बना है इस लिए इसको नागरा शैली  कहते हैं क्योंकि इस शैली के  निर्माण नगर के अंदर होते थे ।

इस शैली के मंदिर, बेस(आधार) से शिखर तक चार कोनों वाले होते हैं जिस का मतलब है की इन मंदिरों की बनावट चौखूँटे  आकार के  स्लैब या प्लेटफॉर्म्स को इस तरह  से एक के  ऊपर एक रखा जाता था की वह दूर से देखने पर गोलाई में प्रतीत होते हैं , बिलकुल वैसा ही आकर जैसा की एक मधुमक्खी की छत्ते का आकार होता है।

माना जाता है की ये निर्माण शैली 5  से 6  शताब्दी मे  विकसित हुई जिसके बाद आने वाली कई शताब्दियों में इसमें कई बदलाव हुए।

नागरा  शैली के  मंदिरों में दो हिस्से होते हैं एक गर्भगृह और एक मंडप, गर्भगृह का शिखर बहुत ऊंचा होता है जिस पर धार्मिक ध्वज  लहराया जाता है।

अब बात करते हैं मंदिर की बनावट की, जिसमे 5  मंज़िलें हैं और 60  स्तम्भ हैं इसके अलावा बाहरी दीवारों पर पशु पक्षियों और

कृष्ण की जीवन लीलाओं के बारे मे बड़ी ही बारीक कारीगरी के द्वारा दर्शाया गया है ।

इस मंदिर के दो प्रवेश द्वार हैं

मुख्य प्रवेश  द्वार  उत्तर दिशा  की तरफ है जिसे मोक्ष द्वार कहते हैं जो की शहर की मेंन  मार्किट की तरफ खुलता है

और दूसरा है दक्षिण द्वार जिसे स्वर्ग द्वार कहते है जो की गोमती नदी की तरफ खुलता है ।

हज़ारों सालों से अनेकों दंतकथाओं से होता हुआ वास्तविकता की धरातल पर लाखों श्रद्धालुओं के  मन में आस्था और भक्ति का प्रतीक बनकर आज भी मजबूती से खड़ा है ये द्वारकाधीश मंदिर ।

Picture credit:

Desh gujrat ,    gujrattourism.com,   hi,brajdicovery.org ,  hindi nativeplanet.com ,  

lakshmi sarnath,   tripadvisor,   Wikipedia,   wikiwand,  youtube 

 

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