तेलंगाना के हनुमानकुंडा पहाड़ी पर एक अदभुत मंदिर है जिसे भगवान् सूर्य की उपासना के लिये तत्कालीन राजा , राजा रुद्रदेव ने सन 1163 ad में बनवाया था. राजा रुद्रदेव काकात्यन काल के एक महान राजा थे , और उस काल की कला का यह मंदिर एक महत्वपूर्ण उदहारण है . यह मंदिर एक तारे के आकार मे बना है . इस मंदिर मे एक हज़ार पिलर्स बने हैं , जिन पर बेहतरीन और बहुत ही बारीक वास्तुकला को दर्शाया गया है, जिनमे सुई से भी बारीक छेद हैं जिनको उस समय बिना किसी अत्याधुनिक औज़ारों की मदत से बनाना असंभव था . इस मंदिर की खासियत यह है की इस मंदिर में विराजमान देवों को मंदिर के किसी भी कोने से देखेंगे तो कोई भी पिलर बीच में नहीं आएगा .मंदिर के बाहर 6 फ़ीट के विशालकाए नंदी की एक चमकदार काले पत्थर की मूर्ति भी स्थापित है. इस मंदिर की बुनियाद को मज़बूत बनाने के लिए एक अदभुत तकनीक का प्रयोग किया गया था .जब इसकी बुनियाद की खुदाई की गयी तो पता चला की इसकी बुनियाद मे गीली बालू भरी हुई है जो हमेशा गीली रहती है. और शोध करने पर एक पानी का रास्ता मिला जो मंदिर से 3 किलोमीटर दूर तालाब से जुड़ा था जिसकी वजह से बुनियाद की रेत और बालू हमेशा गीली रहती है , और इसे मज़बूती प्रदान करती है. इस मंदिर को उस समय बेजोड़ तकनीक और औज़ारों की मदत से बनाया गया होगा , जो हमारी समझ से परे है . मंदिर की दीवारों पे आपको कुछ औज़ारों के चित्र भी बने हुए दिखाई देंगे जो बहुत ही अचंभित करने वाले हैं क्योकि वे आज के अत्याधुनिक ड्रिलिंग औज़ारों से हूबहू मेल खाते हैं . परन्तु उस काल में इतने बेहतरीन औज़ार कहा से आये और इतनी उन्नत तकनीक कैसे पता थी और फिर कैसे लुप्त होगयी ...... यह बात आज भी एक अनसुलझी पहेली है...