कहा जाता है कि यह हीरा भारत की गोलकुंडा की खान से निकाला गया था। 'कोहिनूर' का अर्थ है- आभा या रोशनी का पर्वत। यह कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ, अन्ततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया, व उनके खजाने में शामिल हो गया. हिन्दू कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं यह मणि, जाम्बवंत से ली थी, जिसकी पुत्री जामवंती ने बाद में श्री कृष्ण से विवाह भी किया था। जब जाम्वंत सो रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने यह मणि चुरा ली थी। कोहिनूर' का अर्थ होता है 'रोशनी का पहाड़'। ऐसी मान्यता है कि यह हीरा अभिशप्त है। कहते हैं कि यह हीरा जिसके भी पास रहता है उसकी जिंदगी बर्बाद हो जाती है। इस हीरे ने कई राजपरिवारों को तबाह कर दिया। कई साम्राज्यों ने इस हीरे को अपने पास रखा लेकिन जिसने भी रखा वह मौत के मुंह में चला गया। जिसके पास भी यह पहुंचा, उसका परचम शुरू में तो खूब लहराया लेकिन अंत भी बुरी तरह हुआ। कहा जाता है कि यह हीरा 1306 में तब चर्चा में आया जबकि इसको पहनने वाले एक शख्स ने लिखा कि जो भी इंसान इस हीरे को पहनेगा, वो इस संसार पर राज तो करेगा लेकिन इसी के साथ उसका दुर्भाग्य भी शुरू हो जाएगा बाबर ने अपने बाबरनामा में लिखा है, कि यह हीरा १२९४ में मालवा के एक (अनामी) राजा का था। बाबर ने इसका मूल्य यह आंका, कि पूरे संसार को दो दिनों तक पेट भर सके, इतना महंगा। बाबरनामा में दिया है, कि किस प्रकार मालवा के राजा को जबरदस्ती यह विरासत अलाउद्दीन खिलजी को देने पर मजबूर किया गया। उसके बाद यह दिल्ली सल्तनत के उत्तराधिकारियों द्वारा आगे बढ़ाया गया और अन्ततः १५२६ में, बाबर की जीत पर उसे प्राप्त हुआ। शाहजहां ने कोहिनूर को अपने प्रसिद्ध मयूर-सिंहासन (तख्ते-ताउस) में जड़वाया। उसके पुत्र औरंगज़ेब ने अपने पिता को कैद करके आगरा के किले में रखा। यह भी कथा है, कि उसने कोहिनूर को खिड़की के पास इस तरह रखा, कि उसके अंदर, शाहजहां को उसमें ताजमहल का प्रतिबिम्ब दिखायी दे। कोहिनूरमुगलो के पास १७३९ में हुए ईरानी शासक नादिर शाह के आक्रमण तक ही रहा। उसने आगरा व दिल्ली में भयंकर लूटपाट की। वह मयूर सिंहासन सहित कोहिनूर व अगाध सम्पत्ति फारस लूट कर ले गया। इस हीरे को प्राप्त करने पर ही, नादिर शाह के मुख से अचानक निकल पड़ा: कोह-इ-नूर, जिससे इसको अपना वर्तमान नाम मिला। कोहिनूर को रखने वाले आखिरी हिन्दुस्तानी पंजाब का रणजीत सिंह था।