आज हम बात कर रहे हैं भारतीय बंगाली परिवारों में होने वाली परंपरा के बारे में जिसे बड़े ही धूम धाम से "जोमाय शष्टि" के नाम से मनाया जाता है इसे कब और क्यों मनाया जाता है इसके पीछे एक बहुत ही प्रचलित कथा है जिसके अनुसार एक बार एक लालची बूढी औरत थी, जो हमेशा सारा खाना खा जाती थी और दोष बिल्ली पर डाल देती थी। बिल्ली माँ शष्टि की वाहन होती है इसलिए उसने जाकर माँ शष्टि से बूढी औरत की शिकायत की और फिर माँ शष्टि उस औरत को सबक सिखाने के लिये उसकी बेटी और दामाद के प्राण ले लेती हैं। जिसके बाद बूढ़ी औरत को अपनी गलती का अहसास होता है और वो माँ शष्टि की पूजा करती है जिसके बाद माँ उसके बेटी और दामाद लौटा देती है।
और फिर अपनी गलती को सुधारते हुए वो औरत अपने जमाई और बेटी को घर पर बुलाती है और उनका पूरा आदर सत्कार करती है इसी कथा से प्रेरणा लेते हुए बंगाल में यह त्योहार मनाते हैं इसे गर्मी के मौसम में मनाया जाता है। जैसा की हम सभी जानते हैं की, भारतीय संस्कृति में जमाई को बहुत मान और महत्व दिया जाता है और बंगाल का यह पर्व इसी को दर्शाता है। इस परंपरा के अनुसार सास सुबह सुबह नहा कर, एक थाल में दूब(घास), दाना और पांच तरह के फल लेती है और शष्टि पूजा करती है। शष्टि पूजा के बाद पवित्र जल को छिड़काया जाता है और सास अपने बेटी और जमाई के लम्बी आयु की कामना करती है।पूजा के बाद सास जमाई को खूब सारे उपहार देती है और फिर उनको अलग अलग तरह के स्वादिष्ट पकवानों का भोजन कराती है