हम भारत की बात करे या किसी अन्य दूसरे देशों की बात करें तो हर जगह के अलग- अलग त्यौहार होते है । दीपावली,ईद ,लोहड़ी जैसे अनेक त्योहारों के बारे में तो सब ही जानते है लेकिन आपने कभी हरेला पर्व के बारे में सुना है क्या........... उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र के लोगों के लिए हरेला पर्व बहुत ही खास होता है और इस त्यौहार को मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। वहां के लोग इसे बहुत ही धूम धाम से मानते हैं. हरेला का सम्बन्ध कृषि से होता है। इस पर्व के शुरू होने से नौ दिन पहले किसी टोकरी या अन्य किसी बर्तन में मिट्टी डालकर गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि 5 या 7 तरह के बीजों को बोया जाता है, और नौ दिनों तक रोज इसमें पानी डाला जाता है. धीरे-धीरे उन बीजों से छोटे-छोटे पौधे उगने लगते हैं, इन्हीं पौधों को हरेला कहते हैं, यहाँ के लोगों का मानना है की हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल भी अच्छी होगी और हरेला पर्व के दिन इसे किसी बुजुर्ग महिला के द्वारा काटा जाता है और फिर पुरे विधि विधान के साथ पूजा (शिव परिवार ) करते हुए फसल अच्छी होने की प्रार्थना करते हैं.पूजा पूर्ण रूप से सम्पन होने के बाद हरेला के पत्ते देवताओं को चढ़ाये जाते है और फिर परिवार के सभी लोग हरेले के पत्तों को सिर और कान पर रखते हैं और घर के बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद मांगते है. इसके बाद घर की बुजुर्ग महिलाएं उन्हें एक कुमाऊँनी भाषा में गीत गाकर आशीर्वाद देती हैं । हरेला पर्व के दिन लोग अपने अपने घरों में स्वादिष्ट पकवान बनाते है और एक दूसरे के घर बाटते हुए ख़ुशी के साथ हरेला पर्व को मनाते हैं ।