क्या आप विश्वास करेंगे की बंगाल में स्थित आज का मुर्शिदाबाद शहर किसी समय मे इतना विकसित था, की वो उस समय के लंदन की बराबरी करता था तो आखिर क्या हुआ होगा की इतना समृद्ध और विकसित शहर गुमनामी के रास्ते पर चल दिया???
अब आइये चलते हैं ये जानने की कैसे पलटी मुर्शिदाबाद की तकदीर । मुर्शिदाबाद का इतिहास काफी पुराना है, कहा जाता है की प्राचीन काल मे ये गौंडा और वंगा साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था इसके बाद आया मुगलों का समय जब यह जगह मुर्शिदाबाद से पहले मुखसूदाबाद के नाम से जानी जाती थी, जिसे शायद कभी अकबर के समय मे बसाया गया होगा और इतिहास मे इस जगह के प्रारंभिक विकास का श्रेय मख़सूस खान नाम के व्यापारी को दिया गया है ।
कहा जाता है की 17 वि शताब्दी मे इस जगह की ख्याति प्रमुख सिल्क उत्पादक क्षेत्र के रूप मे परवान चढ़ रही थी ।
18 वि शताब्दी मे मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने बंगाल के गवर्नर मुर्शीद कुली खान को आदेश दिया की वह अपनी राजधानी ढाका से हटा कर किसी दूसरी जगह बनाएँ, और इस तरह मुर्शिदाबाद बन गया बंगाल की नयी राजधानी , जिसे उसका नाम मुर्शिद कुली खान से मिला जिसके बाद ये जगह बंगाल की राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बन गयी, और इसी समय मुर्शिदाबाद अपनी उन्नति और प्रगति के चरम पे था क्योंकि यही वो समय था जब यहाँ अमीर परिवार और बड़ी बड़ी कंपनियों ने अपने हैड ऑफिस बनाना शुरू कर दिए थे, और इस तरह मुर्शिद कुली खान ने इस जगह को एक सफल औद्योगिक शहर के रूप मे स्थापित कर दिया।
इसके बाद विदेशी कम्पनियाँ व्यापार करने के लिए मुर्शिदाबाद मे आईं और फिर धीरे धीरे व्यापारिक स्थितियों और नवाबों को अपने आधीन करने लगीं जिसके परिणाम स्वरुप आखरी नवाब सिराज उद दौला को अंग्रेज़ों के खिलाफ युद्ध मे हार का मुँह देखना पड़ा! इस तरह अंग्रेज़ी हुकूमत का मुर्शिदाबाद मे आधिपत्य स्थापित हो गया और धीरे धीरे नवाबों का समय ख़त्म हो गया और शुरू हो गया ज़मींदारों का दौर ।
जिसके बाद समय के साथ धूमिल होती गयी मुर्शिदाबाद की शौहरत।
मुर्शिदाबाद अपने समय में बेहद ही उन्नत और खूबसूरत जगह रही होगी जिसके बहतरीन सबूत आज भी इस शहर में मौजूद हैं जिनमे से कुछ चुनिंदा इमारतें हैं: मोती झील और उसके पास बनी पुरानी इमारतें , कटरा मस्जिद ,जगत सेठ का घर ,काठगोलाबाग़,हज़ार दरवाजों वाला हज़ारीद्वार पैलेस और ज़फरगंज क्रिमेट्री जिसके सामने है एक महल के अवशेष जिसका नाम है " नमक हराम दियोरी", जिसे मीर ज़फर साहब का महल और मेन गेट के रूप में भी जाना जाता है इसके बारे में एक बात ये भी कही जाती है की ये वही जगह है सिराज उद दौला का क़त्ल हुआ था । इसके आलावा यहाँ शाहजहां के समय की एक तोप भी है जो अपनी समय की महाविनाशकारी तोपों में से एक है जिसका नाम "जहानकोष" है जिसे (destroyer of the world ) के नाम से भी जाना जाता है ।