राजा हम्मीर देव निडर,साहसी और एक वीर योद्धा थे इनका जन्म 7 जुलाई 1272 को महाराजा जैत्रसिंह के यहाँ रणथम्भौर के क़िले में हुआ था ।
सन 1282 -1301 मे राजा हम्मीर देव ने रणथम्भौर के किले पर शासन किया,और सब शासकों मे से राजा हम्मीर देव सबसे शक्तिशाली शासक थे। ऐसा माना जाता है की इनके शासन काल मे अलाउद्दीन खिलजी ने इनसे कई बार युद्ध किया लेकिन वो उनसे जीत नहीं पाया जिसके बाद उसने आखिरी युद्ध मे एक षड़यंत्र रचा जिसमे, उसने संधि के नाटक के बहाने राजा हम्मीर देव के तीन दूतों को अपने खेमे मे बुला कर अपने षड़यंत्र मे शामिल कर लिया और उनसे राजा की हार का सन्देश काले झंडे को लहराते हुए राजा के महल मे ले जाने को कहा जिससे रानियों को पता चल सके की राजा की युद्ध मे हार हुई है और काले झंडे को देख कर रानियों ने जौहर कर लिया ।
दूसरी ओर जब राजा को षड्यंत्र का पता चला तो उन्होंने उन तीनों दूतों का पीछा किया और किले के बाहर एक दूत का सर धड़ से अलग कर दिया जिसके बाद वे किले मे प्रवेश करने के लिए आगे बड़े और दो बचे दूतों ने प्रवेश द्वार बंद कर दिया जिस वजह से राजा अपना घोड़ा लेकर दिवार पर ही ऊपर चढ़ गये और उनके घोड़े के पैर के निशान आज भी उस दीवार पर दिखाई देते हैं, किन्तु दुर्भाग्य से रानियों को ना बचा पाने के क्रोध और विवशता के कारण शिव मंदिर मे जाकर अपने भी धड़ का त्याग कर दिया। राजा हम्मीर देव ने अपने जीते जी तो किसी आक्रमणकारी को किले मे प्रवेश नहीं करने दिया किन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात ही अलाउद्दीन खिलजी इस किले मे प्रवेश कर पाया ।
संदर्भ : वीकिपीडिया
: उदयपुर ब्लॉग