वेदों का महत्त्व
पश्चिमी देशों की मानें तो अंतरिक्ष से जुड़ी जानकारियाँ हमें 2300 साल पहले मिलना शुरू हुईं और ठोस जानकारियाँ 15 वी और १६ वी शताब्दी मे पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों ने तरह तरह की खोज करके दुनिया के सामने रखीं, जैसे पृथ्वी निरंतर घूमती रहती है,हमारे सौर मंडल के सारे गृह पृथ्वी के नहीं बल्कि सूरज के चक्कर लगाते हैं, सूरज के गुरुत्वाकर्षण से ऐसा होता है और धरती की सूरज से कितनी दूरी है आदि।।।।।
लेकिन हमारे वेद पुराणों मे 5000 से 7000 हजार साल पहले ही इन बातों का उल्लेख किया जा चूका था कि अंतरिक्ष मे सारे गृह सूरज कि परिक्रमा करते हैं। और ऐसा मन जाता है कि आज से करीब 2329 साल पहले पश्चिमी देशों मे प्राचीन लोगों का ये मानना था कि सारे गृह पृथ्वी कि परिक्रमा करते हैं सूरज कि नहीं ! और करीब 310 BCE के आस पास एक ग्रीक खगोल वैज्ञानिक ने सबसे पहले इस थिओरी को सामने रखा कि हमारे सौर मंडल के गृह सूरज कि परिक्रमा करते हैं ना कि धरती की।।।
जो कि हमारे वेदों के करीब 2500 से 3000 साल बाद था।
क्या हैं वेदों के महत्त्व कि अनदेखी के पीछे के कारण
पश्चात संस्कृति का बढ़ता प्रभाव और भारतवर्ष का करीब 700 सालों तक बाहरी आक्रमणकारियों का गुलाम रहना जिस दौरान उनहोंने हमारी संस्कृति,वेद पुराणों और ऐतिहासिक ग्रंथों को नष्ट किया।उसके बाद उन्होंने हमारे इतिहास को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ के दुनिया के सामने रखा, जिसके बाद समय के साथ संस्कृत भाषा का महत्त्व और उसके माध्यम से मिलने वाला वेदों मे छुपा ज्ञान का खज़ाना कहीं खो गया।।।।
बस आवश्यकता है संस्कृत भाषा को समझने और उसका उचित सम्मान करने कि, क्योंकि हमारे पूर्वज संस्कृत में लिखे वेद पुराणों के माध्यम से हजारों वर्ष पहले ही इतना ज्ञान दे के जा चुके हैं जिसकी कोई थाह ही नहीं है।
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