दालें भारत के भोजन का हमेशा से ही मुख्य हिस्सा रही हैं। यहाँ शाकाहारी लोगों की तादात ज़्यादा है और इसी वजह से हर जगह दालों की बड़ी वैराइटी देखने को मिलती है। यहाँ की प्रमुख दालों मे से एक दाल है उरद की दाल। वैसे तो उरद की दाल भारत मे लम्बे समय से खाई जा रही है लेकिन उसका स्वरुप आज के समय मे खाई जाने वाली दाल माखनी से बहुत अलग था, जो था सादा और आसान तरीके से बनाये जाने वाला रूप। जिस तरह उत्तर प्रदेश और आस पास की जगहों पर अरहर की दाल का और बंगाल क्षेत्र में धुली मूँग और मसूर की दाल का रोज़मर्रा के खाने मे सबसे ज़्यादा उपयोग किया जाता है वहीं उरद दाल को उसके पारम्परिक स्वरुप मे आज भी भारत के पंजाब प्रांत के घरों मे सबसे ज़्यादा या कहें हर रोज़ रोटी के साथ खाया जाता है। पारम्परिक तौर पर तैयार इस दाल को काली दाल,साबुत उरद और माह की दाल के नाम से भी जाना जाता है। तो माह की दाल से बनने वाली दाल माखनी को उसके सादे रूप रंग से लज़्ज़तदार मशहूर स्वाद कैसे मिला...... दाल माखनी के बारे मे कहा जाता है की साबुत उरद दाल भारत के बाकी हिस्सों मे दाल मखनी के रूप मे प्रसिद्ध होने से पहले भारत पाकिस्तान विभाजन से पूर्व पेशावर के लोगों द्वारा रोटी के साथ वहाँ के दावों मे बनाई जाती थी और विभाजन के बाद भारत आये एक पंजाबी युवक "कुंदन लाल गुजराल"ने अपने रेस्टॉरेंट मे इस दाल को एक नए स्वाद का ट्विस्ट देकर अपने ग्राहकों के सामने पेश किया जिसमे उनहोंने साबुत उरद की दाल मे टमाटर की तरी,ढेर सारी क्रीम और दही का प्रयोग किया जिसको नाम दिया "दाल माखनी" का
और इस तरह साबुत उरद की सादि दाल बन गयी देश विदेश मे कहलायी जाने वाली मशहूर दाल माखनी जो आज की तारीख मे हमारे देश के हर भारतीय व्यंजन परोसने वाले रेस्टॉरेंट के मेनू मे ज़रूर होती है।
सन्दर्भ :food.ndtv.com
differenttruths.com