हम्पी कर्णाटक का मशहूर, लोकप्रिय पर्यटक स्थल और प्राचीन शहर है जो किसी समय में विजयनगर के राजाओं के साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। एक समय था हम्पी बहुत संपन्न और वैभवशाली हुआ करता था और 14 वीं शताब्दी के दौरान राजा देवराज ने अपने राजकाल में यहाँ एक भव्य मंदिर बनवाया जिसका नाम था विट्ठल मंदिर जो की भगवान् विष्णु का मंदिर था। इस मंदिर का आगे आने वाले राजा कृष्णदेव राए ने भी अपने राजकाल में विस्तार करवाया। ऐसा कहा जाता है की यह मंदिर हम्पी के सभी प्राचीन मंदिरों और भवनों में सबसे सुन्दर मंदिर है। विट्ठल मंदिर को श्री विजय विट्ठल टेम्पल भी कहते हैं यहाँ भगवान विष्णु अपने विट्ठल रूप में विराजमान हैं। हम्पी एक बेहतरीन पर्यटक स्थल होने के साथ साथ दुनियाभर के शोधकर्ताओं के लिए शोध का केंद्र भी है और इसीलिए इस जगह को unesco द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज साइट भी घोषित किया गया है।
क्या बात इस मंदिर को इतना खास बनाती है ?
इस मंदिर की स्थापत्य कला द्रविण निर्माण शैली पर आधारित है। पत्थरों को काट काट कर निर्माण करे हुए इस मंदिर में बेहद ही सुन्दर शिल्पकारी की हुई मूर्तियां,आकृतियां हर जगह दिखाई देती हैं जिनमे छोटी से छोटी बारीकी का ध्यान रखा गया था। इसके अलावा एक और चीज़ इस मंदिर की है जो देश विदेश के लोगों और यहाँ तक की शोधकर्ताओं को भी अपनी ओर आकर्षित करती है। वह है यहाँ के ख़ास तरीके से बने खम्बे। इस मंदिर में कई मंडप हैं सभा मंडप, रंग मंडप,कल्याण मंडप और उत्सव मंडप जहाँ हर जगह बहुत बारीक मंत्रमुग्ध कर देने वाली शिल्पकारी की हुई है फिर चाहे वह दीवारें हों या मंडप की छत यहाँ तक की खम्बे को भी सुन्दर नगकाशी से सजाया गया है। इन सबके बीच है अचंभित करने वाले रंग मंडप में मौजूद करीब 56 खम्बे जो बजते हैं। इन खम्बों पर जब कोई चीज़ टकराई जाए तो उनमे से अलग अलग तरह की मधुर धुनें निकलती हैं। शोधकर्ता बताते हैं की हर एक खम्बे के आसपास कुछ और छोटे खम्बों को बनाया गया है जिनकी संख्या भी अलग है जिनसे अलग अलग तरह के वादन यंत्रों की ध्वनि निकलती है। कहा जाता है की इस मंदिर का निर्माण उस समय के सबसे बेहतरीन वास्तुकार, शिल्पकार और अन्य कारीगरों की बुद्धिमत्ता और कार्यकुशलता की मदद से हुआ था। इसमें इतने अचम्भे की बात यह है की इस तरह की धुनें कई तरह के पत्थरों और केमिकल्स के मिश्रण से तैयार करे गए पत्थरों से ही निकल सकती है जो की दुनिया में सबसे पहले 19 वीं शताब्दी में सोवियत युनियन में बनाये गए थे। दुनियाभर के शोधकर्ताओं के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है की कैसे कई सौ साल पहले भारत में इस तकनीक के प्रयोग से इतनी उत्कृष्ट चीज़ का निर्माण हुआ। क्या हमारे भारतीय लोगों के पास इस तकनीक की जानकारी पहले ही थी? अगर थी तो कैसे ?? और अगर ये मानें की इस तकनीक का आविष्कार पश्चात देशों में हुआ तो फिर यह खम्बे कैसे बने ???
यह सच है की हमारे प्राचीन लोगों के पास ऐसी ऐसी चीज़ों का ज्ञान था जिसके बारे में उस समय के अन्य देशों के लोग सोच भी नहीं सकते थे फिर चाहे वो निर्माण शैली हो या अंतरिक्ष विज्ञान हो या चिकित्सा विज्ञान की बारीकियां..... और उस ज्ञान का भण्डार लिखित रूप में नालंदा विश्वविद्यालय में कई सौ साल पहले मौजूद था और अगर इस विश्वविद्यालय को जला के नष्ट नहीं किया गया होता तो सोचिये आज हमारा देश कहाँ होता...........