क्यूँ पेहेनते थे हमारे ऋषि मुनि लकड़ी की खड़ाऊँ ?पहनने
प्राचीन समय में साधु-संत खड़ाऊ (लकड़ी की चप्पल) पहनते थे। ऐसा इसलिए क्यूंकि हमारे प्राचीन लोग इतने विकसित नहीं थे, या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण था ? शायद उन्हें चालक और कुचालक (condutor and insulator )का अंतर, मतलब और कार्यप्रणाली का ज्ञान था ! गुरुत्वाकर्षण का जो सिद्धांत वैज्ञानिकों ने बाद में प्रतिपादित किया उसे हमारे ऋषि -मुनियों ने काफी पहले ही समझ लिया था। शरीर में प्रवाहित हो रही विद्युत तरंगे गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। इसी जैविक शक्ति को बचाने के लिए साधु-संतों ने पैरों में खड़ाऊ पहनने की प्रथा प्रारंभ की।जहाँ दुनिया को कंडक्टर और इंसुलेटर की समझ 17 वीं हुई हमारे पूर्वज इसके ज्ञाता पहले ही थे। यजुर्वेद में कई जगह लकड़ी की पादुकाओं का भी उल्लेख मिलता है।
शरीर की विद्युत तंरगों को पृत्वी के गुरुत्वाकर्षण द्वारा सोखे जाने से रोकने के लिए लकड़ी की चप्पल पहनी जाती थी।
खडाऊ यानी लकड़ी की चप्पल पहनने से सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि यह शरीर में रक्त संचार को सुचारू रूप से चलाता है|
खड़ऊ पहनने से मानसिक और शारीरिक थकान दूर होती है| यह पैरों की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है और रीढ़ की हड्डी सीधी रखने में मदद मिलती है। इन सब बातों से ये भी सिद्ध होता है की हमारे पूर्वज पृत्वी के गुरुत्वाकर्षण और उसके प्रभाव के बारे में जानते थे और कौसी वस्तु कंडक्टर और कौनसी वस्तु इंसुलेटर का काम करती है इस का भी ज्ञान था उनको।
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