ग्वालियर क़िला :राजा मानसिंह का महल
1000 वर्षों से अधिक समय से ग्वालियर शहर में मौजूद है, "ग्वालियर फोर्ट" .यह किला 'गोपांचल' नामक पर्वत पर स्थित है. किले के पहले राजा का नाम सूरज सेन था, जिनके नाम का प्राचीन 'सूरज कुण्ड' किले पर स्थित है. इसका निर्माण 8 वीं शताब्दी में मान सिंह तोमर ने करवाया था. भारत के सर्वाधिक दुर्भेद्य किलों में से एक है यह विशालकाय किला . इसे बलुआ पत्थर की पहाड़ी पर निर्मित किया गया है और यह मैदानी क्षेत्र से 100 मीटर की ऊंचाई पर है. किले की बाहरी दीवार लगभग 2 मील लंबी है और इसकी चौड़ाई 1 किलोमीटर से लेकर 200 मीटर तक है. किले की दीवारें एकदम खड़ी चढ़ाई वाली हैं.इस दुर्ग में स्थित एक छोटे से मंदिर की दीवार पर शून्य (०) लिखा गया है जो शून्य के लेखन का दूसरा सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण है. यह शून्य आज से लगभग 1500 वर्ष पहले लिखा गया था.इस किले पर विभिन्न शासकों का नियन्त्रण रहा .लाल बलुए पत्थर से बना यह किला शहर की हर दिशा से दिखाई देता है. एक ऊंचे पठार पर बने इस किले तक पहुंचने के लिये दो रास्ते हैं, इस किले के भीतरी हिस्सों में मध्यकालीन स्थापत्य के अद्भुत नमूने स्थित हैं, 15 वि शताब्दी में निर्मित गूजरी महल उनमें से एक है जो राजा मानसिंह और गूजरी रानी मृगनयनी के गहन प्रेम का प्रतीक है. इस महल के बाहरी भाग को उसके मूल स्वरूप में राज्य के पुरातत्व विभाग ने सप्रयास सुरक्षित रखा है किन्तु आन्तरिक हिस्से को संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया है जहां दुर्लभ प्राचीन मूर्तियां रखी गई हैं जो कार्बन डेटिंग के अनुसार प्रथम शती ईस्वी की हैं. ये दुर्लभ मूर्तियां ग्वालियर के आसपास के इलाकों से प्राप्त हुई हैं.
यह किला उथल-पुथल के युग में कई लड़ाइयों का गवाह रहा है साथ ही शांति के दौर में इसने अनेक उत्सव भी मनाए हैं.
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