ताम्र युगी संस्क्रति एक प्राचीन संस्कृति है जिसका ठीक ठीक समय काल तो नहीं खा जासकता किन्तु इतना ज़रूर खा जा सकता है किइस संस्क्रति के लोग आज से 4000 -5000 साल पहले हुआ करते थे, जो अपनी रोज़मर्रा के जीवन में ताम्बे के बने औज़ारों और हथियारों का प्रयोग करते थे। इस बात का पता भारत के अलग अलग जगहों से समय समय पर खुदाई और पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान मिलने वाले तरह तरह के औज़ारों से चलता है जिनकी आर्केओलॉजिस्ट्स के अनुसार कार्बन डेटिंग करने पर यह पता चला की वह 2000 BC यानी आज से करीब करीब 4000 साल पुराने या उससे भी अधिक के समय के हो सकते हैं।
आर्केओलॉजिस्ट S.PGupta के अनुसार भारत में CPC की उत्पत्ति बिहार,झाड़खंड क्षेत्र में हुई होगी जहां तांबा मूल रूप में पाया जाता है। इस संस्कृति का विस्तार गंगा/ यमुना घाटी के आस पास भी था। विषेशज्ञों के अनुसार गंगा यमुना क्षेत्र से ज़्यादा विकसित औज़ार प्राप्त हुए जैसे हापून,नोकीले भाले और मानवरूपी हथियार (anthromophs) जिनके निर्माण में आधुनिक तकनीक की ज़रुरत पड़ी होगी जैसे ढलाई, भराई और बनावट आदि।
इस संस्कृति को आर्केओलॉजिस्ट्स ने कॉपर होअर्ड कल्चर का नाम दिया क्योंकि इन ताम्र निधियों के ज़्यादतर ढेर मिले हैं। उसी युग के भारत के अन्य क्षेत्रों से भी कई प्रकार के कृषि उपकरण भी प्राप्त हुए हैं जैसे खुरपी, कुल्हाड़ी आदि।
सर्वपर्थम 1822 में कानपुर के बिठूर नामक स्थान से विशिस्ट प्रकार के उपकरण प्राप्त हुए थे। तबसे लेकर आकस्मिक रूप से ये उपकरण समूहों में मिलते रहे हैं। भारत में लगभग 90 पुरास्थलों से ताम्र निधियाँ प्राप्त हुईं हैं जिनका प्रसार क्षेत्र ऊपरी गंगा घाटी से बंगाल तथा उड़ीसा तक विस्तृत है। हरयाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश ,गुजरात ,कर्नाटक तथा केरल से महत्वपूर्ण ताम्र निधियां प्राप्त हुईं। मध्य प्रदेश के गुंगेरिया से प्राप्त लगभग 424 ताम्र उपकरण, जिनका भार 200 किलोग्राम से अधिक है, उल्लेखनीय ताम्र निधियाँ हैं। ताम्र निधियों के विशिस्ट प्रकार के उपकरणों के आधार पर इन्हे चपटी कुल्हाड़ियाँ, स्कंधित कुल्हाड़ियाँ, सब्बर या खंती, दुधारी कुल्हाड़ियाँ, परशु मत्स्य भले, कांटेदार भला, शृंगिका तलवार तथा मानवाकृति आदि में विभाजित किया गया है।
info credit : Dr Anil Kumar (Professor- Ancient Indian History And Archeaeology University Of Lucknow)
: paanchaal museum bareilly