चाय के विषय में लोगों में बहुत सी भ्रांतियाँ पायी जाती हैं. समाचार पत्रों में कभी कभी इस प्रकार के भ्रांति पूर्ण समाचार निकलते हैं कि चाय पीने से कैंसर नहीं होता या हृदय रोग नहीं होते आदि. वास्तविकता को जानने के लिए हमें पहले चाय के ऐतिहासिक पक्ष को समझना होगा. जिस प्रकार मुगलों ने हमारे देश को तम्बाकू का आदी बनाया उसी प्रकार अंग्रेजों ने हमारे यहाँ के लोगों को चाय की लत लगाई.अंग्रेजों को यह मालूम था कि चाय एक नशीला पदार्थ है. उनकी नीति थी कि यहाँ के लोगों को चाय का आदी बनाओ, उन्हीं से चाय की खेती कराओ, यहीं पर चाय बेचो और मोटा मुनाफ़ा कमा कर ले जाओ. उन्होंने पहले बाजारों में मुफ्त के ठेले लगवाए. उन ठेलों पर बैनर लगे होते थे (रोज चाय पियो, सौ साल जियो). यह उसी प्रकार है जैसे बदमाश लोग पैसे वाले घरों के लड़कों को पहले मुफ्त में स्मैक पिलाते हैं फिर बाद में जब वे इसके आदी हो जाते हैं तो उनसे खूब पैसे ऐंठते हैं.
संयोग से चाय हमारे राष्ट्रीय चरित्र से मेल खा गयी इसलिए इसका प्रसार प्रचार इतनी तेजी से हुआ जितनी अंग्रेजों को भी उम्मीद नहीं होगी. हमारे समाज में कामचोरी, निठल्लापन, फ़ालतू गपशप, तकल्लुफ बाजी और हर समय खाने पीने की प्रवत्ति बहुत अधिक मात्रा में पायी जाती है.
निठल्ले लोगों के लिए चाय एक वरदान है, दफ्तरों में काम चोरी के लिए चाय एक बहाना है, महिलाओं में गपशप व परनिन्दा, परचर्चा के लिए चाय एक अच्छा जरिया है, घर आए अथिति को सस्ते में निबटाने के लिए चाय सबसे बढ़िया खातिरदारी है इत्यादि.
प्रकृति ने हमारे शरीर रुपी जो अदभुत मशीन बनाई है उसे चलाने वाले तंत्रिका तंत्र और मांस पेशियों को काम करने के बीच में आराम की आवश्यकता होती है, जिससे उनमें होने वाली रासायनिक प्रक्रियाएं ठीक से चलती रहें. आज कल की दौड़ भाग जिन्दगी में कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब काम की अधिकता के कारण हम थकान होने पर भी उस समय आराम नहीं कर सकते. ऐसे में हम स्फूर्ति देने वाली चीजों का प्रयोग करके थकान को कुछ देर के लिए टाल सकते हैं. चाय में पाए जाने वाले पदार्थ कैफीन व थियोब्रोमीन इत्यादि कुछ देर ले लिए थकान को टाल देते हैं. कभी कभी लेने में यह विशेष हानि नहीं करते पर नियमित रूप से लेने में हमारा तंत्रिका तंत्र इनका आदी हो जाता है और इनके न मिलने पर हमें परेशानी होने लगती है. यह एक उसी प्रकार की नशे की अवस्था है जोकि तम्बांकू, शराब व स्मैक का सेवन करने वालों में पाई जाती है.
चाय में एक अन्य बिष टैनिक एसिड भी पाया जाता है. यह वही पदार्थ है जो मृत जानवरों की खाल को सख्त करके चमड़े में बदलने के लिए प्रयुक्त किया जाता है. जीवित मनुष्य के आमाशय (stomach) पर इसका कितना बुरा प्रभाव होता होगा यह आप सोच सकते हैं. टैनिक एसिड भोजन में उपस्थित आइरन को पचने व अवशोषित होने से भी रोकता है जिससे खून की कमी हो जाती है.
संसार के सभी विकसित देशों में चाय बनाने के लिए अच्छी क्वालिटी की पत्ती को गरम पानी में कुछ देर के लिए डाल देते हैं जिससे केवल चाय का हल्का फ्लेवर आता है तथा वह ठंडी हो जाती है. हमारे देश में घटिया दाने वाली चाय को खूब खौलाकर गर्म गर्म पीने का रिवाज है. इससे उसके सारे विष अधिकतम मात्रा में हमारे शरीर में पहुँचते हैं. तेज गर्म होने के कारण चाय खाने की नली और मेंदे (stomach) को भी बहुत नुकसान पहुंचाती है.
चाय से होने वाली हानियाँ
यह एक प्रकार का नशा है जो हमें अपना आदी बनाता है. धीरे धीरे लोग इसके इतने आदी हो जाते हैं कि यदि उन्हें सुबह चाय न मिले तो वे उठ नहीं सकते, उन्हें लैट्रीन नहीं होती व उनके सर में भयंकर दर्द होने लगता है. बहुत से लोगों को शाम को चाय न मिलने पर भी सर दर्द होता है.
चाय एसिडिटी को बढ़ाती है. इससे गैस्ट्राइटिस हो जाती है तथा अल्सर बनने का खतरा होता है. गैस्ट्राइटिस से भूख कम हो जाती है जिससे कुछ लोग कुपोषण के शिकार हो जाते हैं. अल्सर यदि बड़ा हो तो पेट दर्द व खून की उल्टियों की शिकायत हो सकती है. छोटे छोटे अल्सरों से हल्के हल्के खून रिसता रहता है जोकि दिखाई नहीं देता पर उससे खून की कमी हो जाती है. अधिक मिर्च मसाले व तम्बाकू इत्यादि इन परेशानियों को और बढ़ाते हैं. एसिडिटी को दूर करने के लिए लोग भाँति भांति की दवाएं खाने के आदी हो जाते हैं. इन दवाओं से भोजन के अवशोषण (absorption) में बाधा पहुंचती है व पेट के इन्फैक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है.
चाय के साथ चीनी के रूप में फ़ालतू कैलोरीज शरीर में पहुँचती है. यदि साथ में तली चीजें या बिस्कुट इत्यादि लिए जाएं तो ये कैलोरीज़ और बढ़ जाती हैं. ये अनावश्यक कैलोरीज मोटापे को बढ़ाती हैं तथा बहुत सी बीमारियों को जन्म देती हैं. मोटापा व उसे होने वाली बीमारियाँ आज के युग की ख़ास समस्याओं में से हैं.
चाय के सेवन से खाने की नली को भी नुकसान पहुंचता है जोकि दवाओं से ठीक नहीं हो सकता.
आजकल लोगों को यह गलत फहमी हो गई है कि ग्रीन टी नुकसान नहीं करती है बल्कि कुछ लोग समझते हैं कि ग्रीन टी फायदा करती है. सच यह है कि ग्रीन टी में भी वही सारे हानिकारक तत्व मौज़ूद होते हैं. इस लेख के लेखक ने टाटा की केरल स्थित टेटली चाय बनाने वाली फैक्ट्री का दौरा किया तो एक बहुत चौंकाने वाली बात सामने आई. वहाँ गाइड ने यह बताया कि ग्रीन टी का एक डिप पाउच (जिसे लोग एक कप में डालते हैं) एक लीटर हल्के गर्म पानी में डाल कर 20 मिनट तक ढक कर रख देना चाहिए और फिर ठंडा होने के बाद भरे पेट पर थोड़ा थोड़ा पीना चाहिए.
कहने का तात्पर्य यह है कि प्रकृति में पाए जाने वाले नशीले पदार्थों का कभी कभी सेवन करने से कोई विशेष हानि नहीं होती परन्तु उनका नियमित सेवन करने तथा उनका आदी बन जाने से शरीर को बहुत हानि हो सकती है. चाय के विषय में मुख्य परेशानी यह है कि सामान्य लोग यह नहीं जानते कि यह भी एक नशा है. यह बड़े आश्चर्य का विषय है कि भयानक गर्मी के मौसम में जहां एक ओर लोग कूलर व ऐसी चलाते हैं तथा बिजली न आने पर गर्मी के मारे छटपटाते हैं वहीं दूसरी ओर खौलती हुई चाय पी जाते हैं. यह नशे की एक अजीब सी अवस्था है. चाय को जितना कम पिया जाय उतना ही अच्छा है, विशेषकर बेड टी तो बिलकुल नहीं पीनी चाहिए. बाजार में बनने वाली घटिया पत्ती की बार बार खौलाई हुई चाय भी बिलकुल नहीं पीनी चाहिए. गर्म पानी को केतली में डाल कर उसमे अच्छी ब्रांड की पत्ती वाली चाय का फ्लेवर लेकर पीने में कम नुकसान है. घर आये मेहमान पर चाय पीने के लिए दबाब नहीं डालना चाहिए. चाय के मुकाबले कॉफ़ी कम नुकसान करती है.
डॉ. शरद अग्रवाल एम डी
info credit : information by Dr Sharad Agrawal MD.Physcian, Bareilly
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