नींद न आना ( insomnia )
नींद न आने की परेशानी एक बहुत ही आम समस्या है। किसी भी समाज की जनसंख्या के लगभग आधे लोग कभी न कभी नींद न आने की समस्या से ग्रस्त होते हैं। कोई भी व्यक्ति नींद न आने से तो परेशानी महसूस करता ही है साथ ही दिन के समय उसके कार्य करने की क्षमता भी कम हो जाती है और उसके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।
सामान्य स्वस्थ व्यक्ति को 6 से 8 घंटे नींद की आवश्यकता होती है। छोटे बच्चों की नींद की आवश्यकता अधिक होती है जो कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ कम होती जाती है।
नींद क्या है, यह कैसे आती है, इसमें कोई डिस्टरबेंस क्यों होता है, नींद के दौरान दिमाग क्या कार्य करता है, नींद न आने से मस्तिष्क और शरीर को क्या क्या हानियां होती हैं, यह सब एक जटिल विज्ञान है जिस के विषय में अभी बहुत कुछ ज्ञात नहीं है। लेकिन इतना तो तय है कि नींद हमारे शरीर और मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। बहुत से छात्र समझते हैं कि सोने से समय नष्ट होता है। इस कारण से वे जबरदस्ती जाग कर पढने की कोशिश करते हैं। सच यह है कि छह घंटे से कम नींद लेने पर दिमाग को केन्द्रित करने और सोचने समझने की क्षमता कम होती जाती है।
नींद की समस्याएं मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं –
रात में नींद देर से आना, बीच में नींद खुल जाना या सुबह बहुत जल्दी जाग जाना।(insomnia)
नींद के दौरान विशेष प्रकार की परेशानी होना जैसे नींद में बोलना, नींद में डर जाना, नींद में चलना, नींद में पेशाब कर लेना, नींद में दांत किटकिटाना आदि, नींद में पैर पटकना।(parasomnias)
रात में सोने के बाद भी दिन के समय नींद और सुस्ती आना।
नींद न आने के कारण –
(a) नींद की चिंता – कुछ लोग नींद के विषय में बहुत चिंतित होते हैं। जैसे-जैसे रात पास आती है उनकी चिंता बढ़ती जाती है। रात में भी नींद न आने पर वे बार बार उठकर घड़ी देखते हैं व टाइम देखकर परेशान होते हैं।
(b) दिन में सोने से रात की नींद डिस्टर्ब हो सकती है।(विशेषकर दोपहर 3:00 बजे के बाद सोने से)।
(c) सोने से पहले कॉफ़ी या तंबाकू का इस्तेमाल।
(d) बेड पर बैठ कर ऑफिस का काम करना, कंप्यूटर पर कार्य करना, TV देखना या पार्टनर से बहस करना।
(e) मानसिक बीमारियां जैसे डिप्रेशन, मेनिया व स्कीज़ोफ्रेनिया। डिप्रेशन की समस्या हमारे समाज में बहुत अधिक कॉमन है और अक्सर पहचान में नहीं आती है।
(f) बहुत सी दवाएं नींद में व्यवधान डाल सकती हैं जैसे कैफीन, थियोफाइलिन नामक सांस की दवा, डिप्रेशन की कुछ दवाएं, सिप्रोफ्लोक्सासिन ग्रुप की एंटीबायोटिक्स, स्टीरॉयड दवाएं आदि। सोने से पहले अल्कोहल लेने से नींद जल्दी आ सकती है पर उसके बाद दो-तीन घंटे बाद नींद खुलने और फिर नींद न आने की समस्या हो सकती है। नींद की गोली अल्प्राजोलाम आदि से भी यही समस्या हो सकती है।
(g) शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का कोई कष्ट जैसे दर्द होना, जलन होना, सांस फूलना आदि होने पर भी नींद न आने की समस्या हो सकती है।
उपचार:
यदि उपरोक्त कारणों में से कोई कारण नींद न आने की वजह बन रहा हो तो उसका उपचार आवश्यक है। उपरोक्त दवाओं में से यदि कोई दवा रात में खाने से नींद नहीं आती है तो उसे सुबह नाश्ते के बाद या दोपहर में लिया जा सकता है। डिप्रेशन और पुराने दर्द (chronic pain) के इलाज में डिप्रेशन की कुछ विशेष दवाऐं प्रयोग की जाती है जिनसे नींद आने में भी सहायता मिलती है। दिन के समय कुछ न कुछ व्यायाम अवश्य करना चाहिए. इस से भी रात में नींद आने में सहायता मिलती है.
जिन को नींद न आने की परेशानी है उन्हें नींद के लिए अच्छा माहौल बनाने की आवश्यकता होती है। मरीज को अपना सोने और जागने का समय निश्चित रखना चाहिए एवं छुट्टी के दिन भी इसका पालन करना चाहिए। सोने के समय से आधा घंटा पहले से अपने आप को रिलैक्स करने का प्रयास करना चाहिए, जैसे गुनगुने पानी से नहाना, हल्का संगीत सुनना, मैडिटेशन करना आदि। बेडरूम में कंप्यूटर, टेलीविजन, रेडियो, स्मार्टफोन, वीडियो गेम आदि नहीं रखना चाहिए। बिस्तर में लेटने के बाद कोई चिंताजनक विचार करने से बचना चाहिए, कार्य संबंधी परेशानियों के विषय में या अगले दिन क्या-क्या करना है इस विषय में चिंता नहीं करना चाहिए। यदि बिस्तर पर लेटने के 20 मिनट के अंदर नींद न आए तो बिस्तर से उठ कर कुछ देर के लिए मद्धिम रोशनी में हल्का संगीत सुनने व हल्के हल्के टहलने के बाद दोबारा लेटने से नींद आ सकती है।
नींद की दवाएं : हम सबको यह समझना चाहिए कि नींद के समय भी हमारा मस्तिष्क कुछ आवश्यक काम करता है। यदि हम नींद की दवाएं खाते हैं तो उस दौरान मस्तिष्क इन कामों को ठीक से नहीं कर सकता। लंबे समय तक नींद की दवाएं खाने से व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है। बुजुर्ग लोगों में नींद की दवाओं से नशा होने और गिरने व फ्रैक्चर होने का डर होता है। यदि दवा का असर लंबे समय तक रहे तो दिन के समय ड्राइविंग आदि करने में परेशानी हो सकती है और सोचने समझने की क्षमता कम हो सकती है। नींद की दवाऐं लंबे समय तक खाने से उनके आदी (addict) बनने का भी डर होता है। Diazepam, Alprazolam, Clonazepam, Zolpidem आदि दवाओं से यह सब परेशानियां होने की संभावना अधिक होती है इसलिए इन दवाओं को लगातार लंबे समय तक नहीं खाना चाहिए।
नींद न आने के सभी संभावित कारणों को दूर करने के बाद एवं नींद के लिए ठीक माहौल बनाने के बाद भी जिन लोगों को लंबे समय से नींद नहीं आ रही है (तथा नींद न आने के कारण उनका शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है) उन्हें कुछ दवाएं लंबे समय तक लेनी पड़ सकती हैं। ऐसे में उपरोक्त नींद की दवाओं (tranquilizers) के स्थान पर विशेष प्रकार की डिप्रेशन की दवाएं लेना ठीक रहता है (चाहे व्यक्ति को डिप्रेशन न हो तब भी)। इस प्रकार की दवाओं को योग्य चिकित्सकों की निगरानी में ही खाना चाहिए एवं अचानक से बंद नहीं करना चाहिए। इन दवाओं से आदी बनने का खतरा नहीं होता व इन की सहायता से आने वाली नींद प्राकृतिक नींद (natural sleep) जैसी ही होती है।(अर्थात नींद के दौरान मस्तिष्क आवश्यक कार्य करता रहता है)।
डॉ. शरद अग्रवाल एम डी
info credit: written by Dr Sharad Agrawal MD
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