काफल का वृक्ष होता है. काफल का पेड़ उत्तराखंड में सबसे ज्यादा पाया जाता है. खास बात ये है कि यह पेड़ गर्मियों में बहुत ज्यादा देखने को मिलता है. काफल का पेड़ बहुत ही बड़ा और देखने में सुंदर होता है. इस पेड़ पर गुलाबी-लाल रंग के फल लगते हैं, इसका का औषधीय नाम मिरिका एस्कुलेंटा है आयुर्वेद में सदियों से काफल का प्रयोग औषधि के रुप में इस्तेमाल किया जाता रहा है।अंग्रेजी में काफल को Box myrtle (बॉक्स मिर्टल्) कहते हैं लेकिन भारत के विभिन्न प्रांतों में काफल को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। जैसे- different names of kaafal
Sanskrit-कट्फल, सोमवल्क, महावल्कल, कैटर्य :, कुम्भिका, श्रीपर्णिका, कुमुदिका, भद्रवती, रामपत्री;
Hindi-कायफर, कायफल, काफल
Kannada-किरिशिवनि (Kirishivani)
Gujrati-कारीफल (Kariphal)
Tamil-मरुदम पट्टई (Marudam pattai)
Telegu-कैदर्यमु (Kaidaryamu)
Bengali-कायफल (Kaiphal), कट्फल (Katphal)
Nepali-कोबुसी (Kobusi), कायफल (Kaiphal)
Punjabi-कहेला (Kahela), कायफल (Kaiphal)
Malayalam-मरुता (Maruta)
Marathi-कायाफल (Kayaphala)
English-बे-बैरी (Bay-berry)
काफल के फायदे :benefits and uses
कायफल के छाल का चूर्ण बनाकर नाक से सांस लेने पर कफ जनित सिरदर्द से राहत मिलता है।
कायफल के तने के छाल को चबाकर दांतों के बीच दबाकर रखने से दांत दर्द दूर होता है।
इसकी छाल का प्रयोग चर्मशोधन (टैंनिंग) के लिए किया जाता है। काफल का फल गर्मी में शरीर को ठंडक प्रदान करता है। साथ ही इसके फल को खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाती है एवं हृदय रोग, मधुमय रोग उच्च एंव निम्न रक्त चाप नियान्त्रित होता है।
प्राचीन आयुर्वेदीय निघण्टुओं तथा चरक, सुश्रुत आदि सहिताओं में कट्फल का वर्णन प्राप्त होता है। पहाड़ी लोग इसके फलों का सेवन अत्यन्त शौक के साथ करते हैं। भारत के मध्य हिमालय क्षेत्र में 900-2300 मी की ऊँचाई तक हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा आसाम के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
इस लेख में दी गयी जान करि केवल सामान्य सूचना के लिए है। इस लेख में जानकारी विभिन्न माध्यमों से संगृहीत की गयी है इसलिए इन्हें अंतिम सत्य अथवा दवा न मानें और अपने विवेक का प्रयोग करें।