उपचार – दवाओं के उचित प्रयोग द्वारा व जिन वस्तुओं से ऐलर्जी हो उन से बचाव करने पर ऐलर्जिक राइनाइटिस की समस्या पर लगभग पूर्ण नियंत्रण किया जा सकता है. अभी ऐसी कोई दवा नहीं बनी है जो ऐलर्जी की समस्या को जड़ से खत्म कर दे. जो कण नाक में ऐलर्जी पैदा करते हैं वे साँस के साथ लगातार नाक में पहुँचते रहते हैं और वहां जम जाते हैं. ऐलर्जिक राइनाइटिस के मरीज को दिन में कई बार पानी से नाक साफ़ करना चाहिए जिससे ऐलर्जी पैदा करने वाले कण नाक में से हट जाएं.
एलर्जिक राइनाइटिस के इलाज में दो प्रकार की दवाएं काम में लाइ जाती हैं – जुकाम को कंट्रोल करने वाली दवाएं एवं ऐलर्जी होने से रोकने के लिए बचावकारक दवाएं. जिस समय तेज जुकाम हो उस समय दो तीन दिन तक जुकाम की सामान्य दवाएं लेनी होती हैं. इसके बाद यदि पीला बलगम आने लगे तो एंटीबायोटिक लेनी होती है. यदि नाक बंद हो तो भी जुकाम की गोलियों का प्रयोग कर सकते हैं. नाक में डालने वाले ड्राप्स का का प्रयोग कम से कम करना चाहिए. ड्राप्स का अधिक प्रयोग करने से उनके आदी होने का डर रहता है.
ऐलर्जी को रोकने वाली बचावकारक दवाएं दो प्रकार की होती हैं –
ऐलर्जिक राइनाइटिस एवं दमे के रोगियों के लिए परहेज – जिन वस्तुओं से ऐलर्जी हो उनसे यदि बचा जाय तो ऐलर्जिक राइनाइटिस व दमे के अटैक कम पड़ते हैं. यदि किसी स्थान विशेष पर रहने से ऐलर्जी बढ़ जाय तो स्थान बदलने से कम हो सकती है. कई बार देखा जाता है कि दूसरे मकान, मोहल्ले या शहर में जाने पर ऐलर्जिक राइनाइटिस व दमे के अटैक कम या अधिक होने लगते हैं. अलग अलग स्थानों पर वातावरण में पाए जाने वाले ऐलर्जी करने वाले तत्वों की मात्रा कम या ज्यादा होने से ऐसा होता है. ऐलर्जी की बीमारी में खाने पीने की बस्तुओं के परहेज से भी अधिक आवश्यक है साँस के द्वारा नाक व फेफड़ों में पहुँचने वाले एलर्जी करने वाले बारीक कणों का परहेज. एलर्जी के रोगी चाहें वे एलर्जिक राइनाइटिक के मरीज हों अथवा दमे के उनके लिए निम्न परहेज आवश्यक हैं –
खाने के पदार्थ – ऐलर्जी के रोगियों को सामान्यत: ठंडा पानी, कोल्ड ड्रिंक्स, ठंडा दही, आइसक्रीम आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. ताजे बने चावल, दाल व सब्जियां हानि नहीँ पहुंचाती. दूध से बलगम नहीं बनता है. ताजा दही व मीठे फल सामान्यत: नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. ठंडा दही, ठन्डे व खट्टे फल और जूस नुकसान कर सकते हैं, अत: इनका सेवन नहीं करना चाहिए. जिन लोगों को ऐलर्जिक राइनाइटिस या दमे का रोग है उन्हें कुछ विशेष खाद्य पदार्थों से ऐलर्जी हो सकती है. यदि ऐलर्जी का रोगी यह अनुभव करता है कि उसे कोई विशेष चीज खाने से परेशानी होती है तो उसे उसका परहेज करना चाहिए. ऐलर्जी के रोगियों को पान मसाला, सुपारी, पान व तम्बाकू बहुत हानि पहुंचाते हैं, अत: इनका सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए.
साँस के द्वारा नाक व फेफड़ों में पहुँचने वाले पदार्थ – जितने भी प्रकार के धुंए होते हैं, सभी ऐलर्जी कर सकते हैं (जैसे सिगरेट, बीड़ी, हुक्का, अगरबत्ती, धूपबत्ती, कछुआ अगरबत्ती, रसोई का धुंआ, अलाव का धुंआ, हवन का धुंआ, वाहनों व जेनरेटर का धुंआ इत्यादि). जितना संभव हो सके इनसे बचना चाहिए. यदि घर के आस पास अत्यधिक प्रदूषण हो तो मकान बदलने से रोगी को लाभ हो सकता है.
सभी प्रकार की तेज खुशबूदार चीजें जैसे परफ्यूम, टैल्कम पाउडर, रूम स्प्रे, डिओडोरैंट, आइल पेंट, गुड नाईट आदि भी ऐलर्जी कर सकते हैं. सभी प्रकार की बारीक धूल विशेष कर अनाज फटकने से, बिस्तर या कालीन झाड़ने से, दीवारों को रेगमाल करने से और तोड़ फोड़ से उड़ने वाली गर्द व सीमेंट बहुत हानि कारक होती है. यदि ऐसा कार्य करना आवश्यक हो तो मूंह व नाक पर गीला कपड़ा बाँध कर इस प्रकार का कार्य करना चाहिए. घर में सफाई करने के लिए यदि वैक्यूम क्लीनर का उपयोग किया जाय व झाडू के स्थान पर केवल पोंछा लगाया जाय तो धूल से कुछ हद तक बचा जा सकता है.
बिस्तर पर पाई जाने वाली धूल में एक बहुत छोटा पिस्सू के समान हाउस डस्ट माइट (house dust mite) पाया जाता है. बहुत से लोगों को इस से ऐलर्जी होने के कारण एलर्जिक राइनाइटिस व दमे के अटैक होते हैं. इस से बचने के लिए बिस्तर की चादर को सोने से पहले रोज बदलना चाहिए व पानी से धोकर धूप में सुखा देना चाहिए. बहुत से लोगों को पराग कणों, भूसे व जानवरों के रोंएँ से ऐलर्जी होती है. यदि ऐसा है तो इनसे बचना चाहिए. कुछ लोगों को पार्थेनियम घास जिसे कांग्रेस ग्रास भी कहते हैं (सड़कों के किनारे अपने आप उगने वाली खरपतवार जिसमें छोटा सा सफ़ेद फूल होता है) से ऐलर्जी होती है. यदि इस प्रकार की घास घर के आस पास हो तो उसे नष्ट करवा देना चाहिए.
कुछ दवाएं ऐलर्जी के रोग को बढ़ा सकती हैं इनमे एस्प्रिन (रक्त का थक्का बनने से रोकने के लिए) व बीटा ब्लाकर्स (ब्लड प्रेशर व ऐन्जाइना के लिए प्रयुक्त) मुख्य हैं. बाजार में बिकने वाली दर्द निवारक दवाएं भी हानि कारक हो सकती हैं व ब्लड प्रेशर की दवाएं भी योग्य डॉक्टरों से लेकर ही खानी चाहिए.
विशेष – एलर्जी के रोगियों को यह बात भली भाँति समझ लेना चाहिए कि एलर्जी द्वारा होने वाले जुकाम, खांसी व साँस को सबसे अधिक और सबसे शीघ्र आराम स्टीराइड दवाओं (बेटनीसाल, डेकाड्रान, प्रेडनीसोलोन) आदि से आता है. ये दवाएं एक दम आराम पहुंचाती हैं लेकिन फिर मरीज इनका आदी हो जाता है. लम्बे समय में यह दवाएं बहुत नुकसान पहुंचाती हैं. झोला छाप डॉक्टर मरीज को तुरंत आराम पहुंचाने के लिए इन दवाओं का प्रयोग बहुत करते हैं. साँस की दवाएं बेंचने वाले बहुत से ठग टाइप के हकीम आदि लोग भी अपनी पुड़ियों में ये गोलियां पीस कर डाल देते हैं.
एलर्जी वाले जुकाम से अधिक कॉमन जुकाम वायरल इन्फेक्शन्स से होता है जोकि हम सभी लोगों को होता है. जिन लोगों को एलर्जी हो उन्हें सामान्य लोगों के मुकाबले वायरल इन्फेक्शन्स भी अधिक होते हैं और अधिक मुश्किल से ठीक होते हैं. एलर्जी रोकने की दवाओं से वायरल इन्फेक्शन वाले जुकाम को नहीं रोका जा सकता.
डॉ. शरद अग्रवाल एम डी
info by Dr Sharad Agrawal
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इस लेख में दी गयी जान करि केवल सामान्य सूचना के लिए है। इस लेख में जानकारी विभिन्न माध्यमों से संगृहीत की गयी है इसलिए इन्हें अंतिम सत्य अथवा दवा न मानें और अपने विवेक का प्रयोग करें।