प्राचीनकाल में करीब आज से 2573 साल पहले (550 BC) में भारत के पर्शियन साम्राज्य से व्यापारिक सम्बन्ध थे। इस युग को अक़ाइमानियन काल या अक़ाइमानियन एम्पायर या पर्शियन साम्राज्य का समय भी कहा जाता है। इस बात का पता इस समय के ग्रीक लेखकों के द्वारा लिखी जानकारी से चलता है की भारत कितना विकसित देश था। उनमे से कुछ ग्रीक लेखक थे स्काइलेक्स, तैसिअस, हिकातायोस।
ग्रीक लेखक हिकातायोस के अनुसार उस काल में भारतीय सूती कपड़े की पर्शियन साम्राज्य में बहुत अधिक मांग थी। भारत न केवल उस समय का सोने की चिड़िया था, बल्कि सूती कपड़े, लाल और दुर्लभ बैंगनी रंग(exotic purple dye) जो की केवल भारत में ही बनता और मिलता था इसके अलावा सबसे बेहतर गुणवत्ता वाले रेशम जैसे कई विशिष्ट उत्पादों का प्रमुख निर्यातक भी था और वह भी तब जब बाकी दुनिया इन सभी चीजों के बारे में नहीं जानती थी।
एकेमेनियन दुनिया में भारतीय डाई सामग्री की बहुत मांग थी। फारसियों द्वारा भारतीय बैंगनी रंग को आकर्षक रूप से सुंदर और उनकी डाई सामग्री से कहीं बेहतर माना जाता था। यहां तक कि उस समय के प्रसिद्ध लिडियन पर्पल को भी भारतीय किस्म से हीन माना जाता था। केटेसियास ने भारत में बैंगनी रंग के दो स्रोतों का उल्लेख किया है, जो एक प्रकार के कीट से प्राप्त होता है और नदी दलदल के स्रोत के पास उगने वाले एक विशिष्ट फूल से प्राप्त होता है। केटेसियास के अनुसार कीट एम्बर पैदा करने वाले पेड़ों पर पाए जाते थे। भारत का उत्तर-पश्चिमी भाग फारसी साम्राज्य का एक हिस्सा था और यह मुख्य क्षेत्र था जहाँ लाख उगाया जाता था। भारत-रोमन व्यापार की अवधि के दौरान इस क्षेत्र से 'रंगीन लाख' का निर्यात जारी रहा। कीट-उत्पादक बैंगनी रंग के टेसियास द्वारा दिया गया विवरण लाख-कीट के साथ अधिक मेल खाता है।
भारत से निर्यात किए जाने वाले एक अन्य प्रसिद्ध लाल रंग का भी उल्लेख है, जिसे सिनाबार (ग्रीक- किन्नवरी, संस्कृत -वेतसा) के पौधे से प्राप्त किया गया था। . यह कपड़े को ताजा गुलाबी रंग प्रदान करता था । पौधे को कई बीमारियों के लिए दवा के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था।
information:History of science, philosophy and culture in Indian civilization. volume 5 part 1