hindi kahawat , n se sari hindi kahawaten निकली हलक, पडी खलक, hindi kahawat ka sahi arth
Thursday, 02 Mar 2023 08:21 am
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- न अंधे को न्योता देते न दो जने आते. अंधे को बुलाओगे तो अंधा खुद तो आएगा ही, किसी को साथ में ले कर भी आएगा. ऐसा कोई काम करो ही क्यों जिसमें उम्मीद से अधिक खर्च हो.
- न इतना मीठा बन कि चट कर जाएं भूंखे, न इतना कड़वा बन कि जो चक्खे वो थूके. समाज में अपना व्यवहार कैसा रखना चाहिए इसके लिए बड़ा सुंदर सुझाव है. अगर बहुत मीठा बनोगे तो लोग आप से बहुत अपेक्षाएं करेंगे और आपको चैन से जीने नहीं देंगे. अगर बहुत कड़वा बनोगे तो आप के नाम पर थूकेंगे. इसलिए न बहुत मीठा और न बहुत कड़वा, संतुलित व्यवहार करना चाहिए.
- न खुदा ही मिला न बिसाले सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे. बिसाले सनम – प्रिय से मिलना (उर्दू). कहावत का अर्थ स्पष्ट है. इस प्रकार की दूसरी कहावत है – दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम.
- न दीन का न दुनिया का. दीन – धार्मिक आस्था. कोई दुविधा ग्रस्त व्यक्ति जो न धर्म के बताए मार्ग पर चल पा रहा है और न दुनियादारी निभा पा रहा है.
- न देने के नौ बहाने. कोई वस्तु देने का मन न हो तो व्यक्ति तरह तरह के बहाने बनाता है.
- न दौड़ चलेंगे, न ठेस लगेगी. दौड़ के चलने में ठोकर लगने का डर है, हम दौड़ कर चलेंगे ही नहीं तो ठेस क्यों लगेगी. कोई काम करने में जल्दबाजी न करो.
- न नाम लेवा, न पानी देवा. किसी का पूरा खानदान नष्ट हो जाना. न तो कोई नाम लेने वाला बचा, न पितरों को तर्पण देने वाला.
- न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी. राधा नाम की एक लड़की से नाचने के लिए कहा गया. उसने कहा नौ मन तेल के दिए जलाओ तो मैं नाचूँगी. यहाँ नौ मन तेल का अर्थ है कोई असंभव सी शर्त. किसी काम को करने के लिए कोई बहुत बड़ी और अव्यावहारिक शर्त रखे तो यह कहावत कही जाती है.
- न बासी बचे, न कुत्ता खाय. किसी काम को बहुत किफायत से करना जिसमें चीज़ खराब न जाए.
- न मिली तो त्यागी, मिल गई तो वैरागी. स्त्री नहीं मिली तो त्यागी बन गए, मिल गई तो वैरागी बन गए. (वैरागी वैष्णवों का एक सम्प्रदाय है जिसमें स्त्री रख सकते हैं).
- न मैं जलाऊं तेरी, न तू जलाए मेरी. न मैं तुम्हारा नुकसान करो, न तुम मेरा नुकसान करो.
- न मैके में सुख, न ससुराल में. जिसे कहीं सुख न मिले. (घर की दाही वन गई, वन में लागी आग).
- न रहेगा बाँस न बजेगी बांसुरी. सभी जानते हैं कि बांसुरी बांस से बनती है (उसका नाम बांसुरी इसीलिए है). अब अगर बांस नहीं होगा तो बांसुरी बन ही नहीं पाएगी. जिस वस्तु के द्वारा कोई काम होना हो उसे ही नष्ट कर देना.
- न सुनोगे सीख, तो मांगोगे भीख. बड़ों की सीख नहीं सुनोगे तो जीवन में कुछ नहीं बन पाओगे, भीख मांगने की नौबत आ जाएगी.
- नंग बड़े परमेश्वर से. यहाँ नंगे से अर्थ निर्लज्ज व्यक्ति से है. निर्लज्ज व्यक्ति से सबको डरना चाहिए (चाहे एक बार को आप परमात्मा से मत डरो).
- नंगा क्या ओढ़े क्या बिछाए. सभ्य समाज के लोगों की कुछ न्यूनतम आवश्यकताएँ होती हैं, जैसे ओढ़ने और बिछाने के कपड़े. जिसके पास कुछ भी नहीं है वह बेशर्म हो जाता है.
- नंगा क्या नहाए और क्या निचोड़े. जो नंगा है वह नहा कर क्या करेगा, और नहा भी लेगा तो उसे कौन से कपड़े निचोड़ने हैं. जिसके पास कुछ भी न हो उसका भद्दे तरीके से मज़ाक उड़ाने के लिए.
- नंगा खड़ा उजाड़ में, है कोई कपड़ा लेत. जिस के पास कुछ नही है उसका मजाक उड़ाने के लिए..
- नंगा खड़ा बजार में, है कोई कपड़े ले. नंगा बीच बाज़ार में खड़ापूछ रहा है कोई कपड़े लेगा. जो कंजूस और निर्लज्ज आदमी अपने आप को बहुत दानी बताता हो उस का मजाक उड़ाने के लिए.
- नंगा नाचे खोवे क्या. जो निर्लज्ज है वह कुछ भी बेहयाई कर सकता है, उसका कोई नुकसान तो होना नहीं है.
- नंगा साठ रुपये कमाए, तीन पैसे खाए. बहुत कंजूस आदमी के लिए.
- नंगी ने घाट रोका, नहावे न नहाने दे. कोई बेशर्म स्त्री नंगी हो कर घाट पर खड़ी हुई है, खुद भी नहीं नहा रही है और लज्जा के मारे दूसरे लोग भी नहीं नहा पा रहे हैं. कोई नीच व्यक्ति खुद भी कोई काम न करे और दूसरों को भी न करने दे तो.
- नंगी हो के काता सूत, बूढ़ी होके जाया पूत. उचित समय पर कोई काम न करना. जब कपड़े बिलकुल फट गए तो कपड़ा बुनने के लिए सूत कातने बैठीं, और जवानी में न करके बुढापे में पुत्र पैदा किया.
- नंगे का क्या चुरा लोगे (नंगे का कोई क्या लेगा). जिसके पास कुछ भी नहीं है (कपड़े तक नहीं हैं) उस से क्या ले लोगे. भाव यह है कि जो निर्लज्ज व्यक्ति है उसकी क्या बेइज्जती कर लोगे (बल्कि उससे लड़ने में आपकी इज्ज़त ही दांव पर लग जाएगी). इंग्लिश में खाते हैं – Beggars are never robbed.
- नंगे को लोटा मिल्यो, बार बार हगन गयो. नंगे को लोटा मिल गया (जो उसके लिए बहुत बड़ी चीज़ है) तो वह दूसरों को लोटा दिखाने के लिए बार बार दिशा मैदान (खुले में शौच करने) जा रहा है. तुच्छ मानसिकता वाले व्यक्ति को छोटी सी चीज़ मिल जाए तो वह बहुत दिखावा करता है.
- नंगे से तो गंगा भी हारी है. निर्लज्ज व्यक्ति से सब हार मान लेते हैं.
- नइहर रहले न जाइ, ससुरार सहले न जाइ. भोजपुरी कहावत. मायके में रहना अच्छा नहीं समझा जाता, इसलिए मायके में रह नहीं सकती, और ससुराल में रहना सहन नहीं होता. नइहर – नैहर, मायका, पीहर.
- नई कहानी, गुड़ से मीठी. पुराने समय में जब मनोरंजन के और कोई साधन नहीं थे तो किस्से कहानियों से ही मन बहलाया जाता था. बड़े लोग एक ही कहानी को बार बार सुनाते थे और बच्चे शौक से सुनते थे. उस समय नई कहानी का बहुत अधिक महत्व हुआ करता था.
- नई घोडी चाल दिखाएगी. बच्चों की कहावत. कुछ बच्चे चोर सिपाही खेल रहे हों तो जो नया बच्चा खेल में शामिल होने आएगा उसे चोर बनना पड़ेगा.
- नई नई दुल्हन की नई नई चाल. जब किसी समूह में नया आने वाला व्यक्ति कुछ नई निराली रीत चलाने की कोशिश करे तो.
- नई नाइन, बांस का नहन्ना. नेल कटर के आविष्कार से पहले नाई लोग लोहे के बने एक छोटे से औजार से नाखून काटते थे जिसे नेह्न्ना कहते थे. कोई आदमी नया नया कोई काम सीखता है तो उसका ढंग निराला होता है. जैसे नयी नाइन बनी तो लोहे की जगह बांस का नेह्न्ना बनाए हुए है.
- नई बहू के नए चाव. किसी भी नए काम को करने में लोगों में अधिक उत्साह होता है. जब घर में नयी बहू आती है तब घर के लोग तरह तरह से उसका लाड़ करते हैं.
- नई बहू नौ दिन की. नयी बहू के नए चाव जल्दी ही खत्म भी हो जाते हैं. नए काम में उत्साह केवल कुछ ही दिन रहता है.
- नउआ के घर चोरी भइल, तीन बोरा बाल गइल. भोजपुरी कहावत. नाई के घर चोरी हुई तो तीन बोरा बाल चोरी गए. जिस के पास कुछ भी नहीं वहाँ क्या चुरा लोगे.
- नउआ देख कांखे बाल. नाई को देख कर बगल में बाल याद आ गए. (बहुत से लोग बगल के बाल नाई से साफ़ करवाते हैं). मौका देख कर अपना काम करा लेना. भोजपुरी कहावत – नउआ के देखि के हजामत बड़ी जाला.
- नए चिकनियाँ, अंडी का फुलेल. कहावत उन के लिए है जिन्हें नया नया फैशन का शौक चढ़ा हो लेकिन शऊर न हो. ऐसे कोई साहब अंडी के तेल को इत्र समझ कर लगा रहे हैं.
- नए नए कानून, नए नए तोड़. सरकारें नए नए कानून बनाती हैं पर होशियार लोग उससे पहले ही उन के तोड़ ढूँढ़ लेते हैं.
- नए नए हाकिम, नई नई बातें. नए हाकिम अपनी ऐंठ में नए कायदे लागू करने की कोशिश करते हैं.
- नए सिपाही, मूंछ में ढांटा. ढाटा – चेहरे पर बाँधने वाला कपड़ा. नया नया अधिकार मिलने पर व्यक्ति बौरा जाता है.
- नकटा जीवे बुरे हवाल. दुर्भाग्य वश नकटे व्यक्ति को समाज में अशुभ माना जाता है. इसलिए बेचारा नकटा आदमी बुरी स्थिति में जीता है.
- नकटा बूचा सबसे ऊँचा. बूचा माने कान कटा कुत्ता (जो काफी मनहूस माना जाता है). और अगर वह नकटा भी हो तो क्या कहने. कुल मिला कर यहाँ नकटा बूचा का अर्थ महा निर्लज्ज और मनहूस आदमी से है. इस प्रकार के आदमी से सब डरते हैं. (नंग बड़े परमेश्वर से)
- नकटी नथ का क्या करे. जिसकी नाक ही नहीं है वह नथ का क्या करेगी.
- नकटे का खाइए, उकेटे का न खाइए. उकेटा – दे कर एहसान जताने वाला आदमी. यहाँ नकटे का अर्थ है जिसकी कोई इज्जत न हो. किसी भी दीन हीन व्यक्ति का एहसान ले लो पर जो दे कर एहसान जताए उस का एहसान मत लो.
- नकटे की नाक कटी, सवा गज और बढ़ी. जिसकी कोई इज्जत न हो उस की क्या बेइज्जती कर लोगे.
- नकटे को आइना मत दिखाओ. 1. नकटे को आइना दिखाने का अर्थ है उसके नकटेपन को लेकर उसे चिढ़ाना. किसी व्यक्ति में कोई कमी हो तो उस को ले कर उसे अपमानित नहीं करना चाहिए. 2. दुष्ट और निर्लज्ज आदमी से कभी यह नहीं कहना चाहिए कि वह दुष्ट है.
- नकद को छोड़ नफे को न दौड़िए. जो लाभ नकद मिल रहा हो वह अधिक अच्छा है. उस को छोड़ कर अधिक लाभ के पीछे भागने में खतरा अधिक है. (नौ नकद न तेरह उधार)
- नकल को भी अकल चाहिए. किसी की नकल करने के लिए भी इतनी बुद्धि तो होना ही चाहिए कि नकल करने में हमारा भला बुरा क्या होगा यह समझ सके. इंग्लिश में कहावत है – Imitation needs intelligence.
- नकल में भी असल की कुछ न कुछ बू आ ही जाती है. नकल कर के बनी हुई चीज़ में भी कुछ कुछ असली चीज़ का असर आ जाता है.
- नकलची बन्दर. बंदर की आदत होती है कि वह इंसान की नकल करता है. इंसानों में कोई किसी की नकल करता हो तो उसे नकलची बन्दर कह कर चिढ़ाते हैं. विशेष कर बच्चों की कहावत. इस विषय में एक कहानी सुनाई जाती है. एक टोपी बेचने वाला गाँव से शहर जा रहा था. रास्ते में थक कर एक पेड़ के नीचे सो गया. पेड़ पर बहुत सारे बन्दर रहते थे, वे उसकी टोपियाँ उठा उठा कर ले गए. जागने पर उसने यह दृश्य देखा तो चकरा गया. फिर उसे एक तरकीब सूझी. उसने एक टोपी अपने सर पर लगा ली. बंदरों ने भी सर पर टोपी लगा ली. अब उसने सर से टोपी उतार कर जमीन पर पटक दी, तो बंदरों ने भी अपने अपने सर से टोपियाँ उतार कर नीचे फेंक दीं.
- नक्कार खाने में तूती की आवाज. नक्कारखाना – जहाँ बहुत से नगाड़े रखे जाते हों या बजाए जाते हों, तूती – शहनाई की तरह का एक बाजा. जहाँ बड़े बड़े नगाड़े बज रहे हों वहाँ तूती की आवाज क्या सुनाई देगी. कहावत का अर्थ है किसी महत्व हीन आदमी की आवाज जिस पर किसी का ध्यान न जाए.
- नखरे दिखावें मुर्गी, बल बल जावे कौवा. कुछ फूहड़ लडकियाँ जो अपने को अधिक सुंदर समझती हैं, नखरे दिखाती हैं और छिछोरे लड़के उन नखरों पर बलिहारी जाते हैं, इस प्रकार के जोड़ों का मजाक उड़ाने के लिए.
- नटनी जब बाँस पर चढी तो घूंघट क्या. नटनी बांस पर चढ़ कर करतब दिखाती है तो उस का सारा शरीर ही दिखाई देता है. अब ऐसे में अगर वह घूँघट करे तो क्या फायदा. जब कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति सामजिक प्रतिष्ठा के प्रतिकूल कोई छोटा काम कर रहा हो तो लोगों से छिपाना क्या.
- नदी किनारे घर किया, क़र्ज़ काढ़ कर खाएं, जब कोई आवे मांगने, गड़प नदी में जाएं. उधार ले कर छिपे छिपे घूमने वाले के लिए.
- नदी किनारे रूखडा, जब तब होय बिनास. रूखड़ा – रूख, पेड़. वृक्ष का अपभ्रंश, (वृक्ष – वृक्ख – रुक्ख). नदी के किनारे उगे पेड़ को हर समय इस बात का खतरा होता है कि मिट्टी कटने से वह नदी में गिर सकता है. सदैव खतरे के साये में पलने वाले ले लिए.
- नदी नाव संयोग. थोड़े समय का मेल. इस संसार में हमारे जो नाते हैं वे भी नदी नाव संयोग की भांति क्षणिक हैं.
- नदी में जाना और प्यासे आना. जहाँ जा कर आप का काम हो जाना चाहिए था अगर वहाँ से आप खाली हाथ लौट आते हैं तो यह कहावत कही जाएगी.
- नदीदी ने कटोरा पाया, पानी पी पी पेट फुलाया. नदीदी माने लालची स्त्री. यदि किसी ओछी मानसिकता वाले व्यक्ति को कोई साधारण चीज भी मिल जाए तो वह बहुत इतराता है. ऐसे में यह कहावत कही जाती है. (नदीदी को लोटा मिला, रातों उठ कर पानी पिया).
- ननद का नन्दोई, गले लाग रोई. जिस से बहुत दूर का संबंध हो उस से बहुत आत्मीयता और सहानुभूति दिखाना.
- नन्ही सी नाक, नौसेर की नथनी. ऐसा भारी भरकम श्रृंगार जिसका कोई औचित्य न हो.इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि किसी छोटी आयु वाले या कम सामर्थ्य के व्यक्ति पर भारी भरकम जिम्मेदारी डाल देना.
- नन्हीं सी जान और इतने अरमान. किसी छोटे आदमी या कम आयु के व्यक्ति की बहुत बड़ी बड़ी महत्वाकांक्षाएं होना.
- नपूती का घर सूना, मूरख का हिरदै सूना, दरिद्री का सब कुछ सूना. अर्थ स्पष्ट है.नपूती – जिसके पुत्र न हो.
- नमक गिराओगे तो आँखों से उठाना पड़ेगा. यह एक लोक विश्वास है. लोक विश्वासों के पीछे अक्सर कोई कारण भी होता है. एक समय में समुद्र के पानी से नमक नहीं बनाया जाता था बल्कि पहाड़ से बड़ी मुश्किल से सेंधा नमक लाया जाता था. उस समय साधन सम्पन्न लोग नमक को बर्बाद न करें इसलिए उनके मन में इस प्रकार का डर बैठाया गया होगा.
- नमक हरामी नर से तो कूकर ही भलो. नमकहराम माने कृतघ्न और धोखेबाज, इस प्रकार के आदमी से तो कुत्ता अधिक अच्छा है.
- नमनि नीच की अति दुखदाई. नीच व्यक्ति यदि झुके (नम्रता दिखाए) तो समझ लो कि धोखा देने वाला है.
- नमे सो भारी होए. जैसे जैसे व्यक्ति की विनम्रता बढ़ती है वैसे वैसे वह और गंभीर और वज़नदार हो जाता है. (ज्यों ज्यों भीगे कामरी, त्यों त्यों भारी होय). नमे से अर्थ नमन करने अर्थात झुकने से भी है और नम होने अर्थात भीगने से भी.
- नया नवाब, आसमान पर दिमाग. नए हाकिम अपने को तुर्रम खां समझते हैं.
- नया नौ दिन, पुराना सौ दिन. जब हम किसी से नया नया सम्बंध बनाते हैं तो हमें वह व्यक्ति बहुत अच्छा लगता है और उस के सामने हम पुरानों की उपेक्षा करने लगते हैं, लेकिन कुछ दिन बाद हमें उसमें कमियाँ नज़र आने लगती हैं और पुराना अच्छा लगने लगता है. इसी कारण सयाने लोग यह सीख देते हैं कि नए के कारण पुराने की उपेक्षा मत करो. (old is gold).
- नया नौकर तीरंदाज़. नया नौकर अपने को ज्यादा होशियार सिद्ध करने की कोशिश करता है.
- नया मुल्ला ज्यादा जोर से बांग देता है. किसी को कोई नया काम मिलता है तो वह अधिक जोर शोर और दिखावे के साथ वह काम करता है.
- नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है. कहावत उस समय की जब हिन्दुओं (विशेषकर ब्राह्मण व बनियों में) प्याज खाने को बहुत बुरा माना जाता था और प्याज को मुसलमानों के खाने की चीज़ मानते थे. आज अधिकतर लोग प्याज खाने लगे हैं लेकिन पूजा और व्रत के दिन अब भी बहुत से लोग प्याज नहीं खाते. कहावत में कहा गया है कि जो नया नया मुसलमान बना है वह ज्यादा प्याज खाता है अर्थात कोई व्यक्ति जो भी नया काम शुरू करता है उसका दिखावा अधिक करता है.
- नयी घोसन, उपलों का तकिया. घोसन – दूध का काम करने वाले घोसी की पत्नी. दूध का नया काम शुरू करने वाली स्त्री अपने काम को महत्वपूर्ण सिद्ध करने के लिए गोबर के कंडों का तकिया लगाती है.
- नर बिन तिरिया, ज्यों अन्न बिन देह, खेती बिन मेह. मेह – वर्षा (संभवत: मेघ का अपभ्रंश है). पुरुष बिना स्त्री उसी प्रकार असहाय है जैसे अन्न के बिना मानव शरीर और वर्षा के बिना खेती.
- नरको में ठेलाठेली. भोजपुरी कहावत. नरक में भी जीवन आसान नहीं है, वहाँ भी बड़ा कम्पटीशन है.
- नर्मदा के कंकर, सब ही शिव शंकर. मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी को अत्यधिक पवित्र मानते हैं. (बहुत से लोग आपसी अभिवादन में नर्मदे नर्मदे बोलते हैं).
- नशा उसने पिया, खुमार तुम्हें चढ़ा. जब किसी बड़े अधिकारी या नेता का भाई भतीजा या चमचा अपने को ज्यादा समझे तो.
- नशेड़ी को नशेड़ी मिल ही जाता है. (शक्करखोरे को शक्करखोरा मिल ही जाता है). ऐबीआदमी, लोगों की भीड़ में भी अपने जैसा ऐबी ढूँढ़ लेता है.
- नसकट पनही, बतकट जोय, जो पहलौठी बिटिया होए; तातरि कृषि, बौरहा भाई, घाघ कहें दुःख कहाँ समाय. घाघ ने पाँच दुःख महा दुःख बताए हैं – 1. जूता (पनही) छोटा हो जो पैर की नस को काटता हो, 2. स्त्री (जोय, जोरू) जो पति की हर बात काटती हो, 3. पहली सन्तान यदि बेटी हो (अब इन बातों का महत्व कम हो गया है लेकिन पहले पुत्र होना अत्यधिक आवश्यक मानते थे), 4. खेती के लिए बहुत थोड़ी (तातरि) जमीन और 5. बौरहा भाई. बौरहा का अर्थ पागल भी होता है और गूंगा बहरा भी.
- नहर का मुर्दा और शहर का फ़क़ीर, इनका क्या ठिकाना. नहर में यदि कोई लाश पड़ी हो तो कुछ नहीं कह सकते कि वह बह कर कहाँ से कहाँ पहुँच जाए और फ़क़ीर भी शहर में आज एक जगह है तो कल कुछ पता नहीं कहाँ मिले.
- नहाए के बाल और खाए के गाल अलग नजर आ जाते हैं. जो व्यक्ति नहाया हुआ हो उसके बाल देख कर ही फौरन समझ में आ जाता है. इसी प्रकार जो ठीक से खाता पीता हो उसके गाल देख कर ही समझ में आ जाता है.
- नहीं मामा से काना मामा अच्छा. किसी का मामा काना हो यह थोड़ी परेशानी की बात है लेकिन मामा हो ही न इससे तो अच्छा है. कोई चीज़ बिलकुल न हो इसके मुकाबले थोड़ी सी त्रुटि वाली हो वह बेहतर है.
- नहीं मिली नारी तो सदा ब्रह्मचारी. नारी न मिलने पर मजबूरी में ब्रह्मचारी बनने वालों पर व्यंग्य.
- ना अच्छा गीत गाऊँगा ना दरबार पकड़कर जाऊँगा. काम से बचने के लिए जानबूझकर हमेशा गलत काम ही करना.
- ना गाऊँ, गाऊं तो बिरहा गाऊँ. गाने में नखरा कर रहे हैं, और गाएंगे तो बिरहा ही गाएँगे. या तो काम करेंगे नहीं और करेंगे तो अपने मन से ही करेंगे. बिरहा – विशेष प्रकार के लोकगीत (विरह के)
- ना बाले की माँ मरे, ना बूढ़े की जोय. बालक की माँ न मरे औए बूढ़े की स्त्री न मरे. बच्चा अपनी माँ के बिना और बूढ़ा व्यक्ति अपनी पत्नी के बिना बेसहारा हो जाते हैं.
- नाइन सबके गोड़े धोउत, अपने धोउत लजावे. (सबके पाँव नइनियाँ धोए, धोवत आप लजाए). हम दूसरों के यहाँ जो काम करते हैं वही काम अपने यहाँ करने में शर्म महसूस करते हैं.
- नाई देख दाढ़ी बढ़ी. जहाँ कोई सुविधा उपलब्ध हो वहाँ उसका लाभ उठाना.
- नाई की बरात में सब ही ठाकुर. सब की बारात में नाई प्रमुख सेवक के रूप में होता है और कुछ लोग विशेष माननीय होते हैं. नाई की बरात में सभी माननीय हैं.
- नाई नाई की बारात, टिपारा कौन धरे. टिपारा – मुकुट. औरों की बारात में तो नाई दूल्हे को मुकुट पहनाता है, नाई की बारात में मुकुट कौन पहनाएगा. जैसे कोई डॉक्टर बीमार हो जाए तो इलाज कौन करेगा.
- नाई नाई, बाल कितने ? जजमान, अभी सामने आ जाएँगे. जो काम अभी तुरंत होने वाला है उसमें पहले से अनुमान क्या लगाना. एग्जिट पोल देख कर लोग बहस करते हैं तो उन से यही कहना चाहिए की नतीजे दो दिन में आने वाले हैं अभी बहस क्यों कर रहे हो.
- नाई, दाई, बैद, कसाई, इनका सूतक कभी न जाई. पुरानी मान्यता के अनुसार घर में बच्चे का जन्म होने पर दस दिन तक सूतक काल होता है जिस में कोई धार्मिक कार्य नहीं करना होता है, इसी प्रकार घर में किसी की मृत्यु होने पर तेरह दिन का सूतक काल होता है. कहावत में कहा गया है कि नाई, बच्चे का जन्म कराने वाली दाई, वैद्य (डॉक्टर) और कसाई ये सूतक के बंधन से मुक्त हैं.
- नाक कटी पर घी तो चाटा. एक जमाने में किसी को घी चाटने को मिले तो यह बहुत बड़ी नियामत थी. किसी की नाक दुर्घटनावश कट गई तो उसे घी चाटने को दिया गया. अब वह अगर इस बात से खुश हो तो यह कहावत कही जाएगी. अपमान हो कर कुछ इनाम मिले उस पर भी खुश होने वाले के लिए.
- नाक कटी पर हठ न हटी. कुछ लोग कितना भी अपमान झेलना पड़े अपना हठ नहीं छोड़ते.
- नाक कटी बला से, दुश्मन की बदसगुनी तो हुई. अपना नुकसान हुआ फिर भी खुश हैं क्योंकि दुश्मन का भी नुकसान हो गया.
- नाक दबाने से ही मुहँ खुलता है. हिस्टीरिया नाम की बिमारी से ग्रस्त लोग कई बार आँखे बंद कर के और दांत भींच कर बेहोश होने का नाटक करते हैं (विशषकर महिलाएँ अपनी बात मनवाने के लिए). वे वाकई में बेहोश हैं या नहीं यह देखने के लिए उन की नाक को कुछ देर के लिए दबा दिया जाता है. साँस बंद होने पर वे घबरा कर मुँह खोल देते हैं. कहावत का अर्थ है कि दुष्ट लोगों को समझाने के लिए सख्ती करनी पड़ती है.
- नाक पर मक्खी न बैठन दे. ऐसा व्यक्ति जोथोड़ा सा भी अपमान बर्दाश्त न करे.
- नाक हो तो नथिया सोहे. कोई स्त्री अच्छे गहने पहनना चाहे तो उसका चेहरा भी इस लायक होना चाहिए.
- नाच न आवे आँगन टेढ़ा. एक महिला को नाचने के लिए कहा गया. वह नाच नहीं पाई तो कहने लगी कि यह आँगन टेढ़ा है इसलिए वह नृत्य नहीं कर पा रही है. जो लोग कोई काम न कर पाने पर संसाधनों में कमी निकालते हैं उनके लिए यह कहावत कही जाती है.
- नाचने निकली तो घूँघट क्या. जब कोई ओछा काम कर रहे हो तो शर्म क्या करना.
- नाचे कूदे वानरा, माल मदारी खाय. (खेल खिलाड़ी का, पैसा मदारी का). मेहनत कश लोग मेहनत करते हैं और बड़े लोग उसका फ़ायदा उठाते है.
- नाजो नाज बिना रह जाए, काजल टीके बिना नहीं रहती. ज्यादा श्रृंगार और नखरे करने वाली स्त्रियों पर व्यंग्य.
- नाटे खोटे बेच के चार धुरंधर लेहु, आपन काम बनाय के औरन मंगनी देहु. छोटे कद के कामचोर बहुत सारे बैलों को बेच कर चार तगड़े बैल लो. अपना काम भी पूरा करो और जरूरत पर औरों को भी दो. (घाघ कवि)
- नाड़ी की कुछ समझ नहीं है, दवा सभों की करते हैं, वैदों का क्या जाता है बीमार बिचारे मरते हैं. नीम हकीम और झोला छाप डाक्टरों के विषय में कहा गया है.
- नात का न गोत का, बांटा मांगे पोथ का. न नाते में कुछ हैं न गोत्र में, पर जायदाद में हिस्सा मांग रहे हैं.
- नाता न गोता, खड़ा हो के रोता. न कोई रिश्ता है और न ही उस गोत्र के हैं पर किसी के दुःख में बहुत अधिक दुखी हो रहे हैं. गोता शब्द गोत्र का अपभ्रंश है.
- नातिन सिखावे दादी को, बारह ड्योढ़े आठ. अपने को बहुत होशियार समझ कर बड़ों को सिखाने की कोशिश कर रहे हैं और वह भी गलत पढ़ा रहे हैं. (बारह ड्योढ़े आठ बता रहे हैं जबकि आठ ड्योढ़े बारह होता है). अपने को बुद्धिमान समझने वाले मूर्ख लोगों के लिए.
- नानक दुखिया सब संसार. कोई अपने दुखों का रोना रो रहा हो तो उसको समझाने के लिए यह कहावत कही जाती है कि संसार में सभी प्राणियों को कोई न कोई दुख है.
- नानक नन्हा हो रहो जैसे नन्ही दूब, बड़े पेड़ गिर जाईहैं दूब खूब की खूब. गुरु नानक देव कहते हैं कि व्यक्ति को विनम्र और छोटा बन कर रहना चाहिए. जब आंधी आती है तब बड़े पेड़ गिर जाते हैं लेकिन दूब पर कोई असर नहीं होता.
- नाना की दौलत पर, नवासा ऐंड़ा फिरे. (नाना के धन पर धेवता ऐंठे). जो खुद तो किसी काबिल न हो पर अपने पूर्वजों की कमाई हुई दौलत पर घमंड करे.
- नानी के आगे ननसाल की बातें. नानी को जा कर बता रहे हैं कि ननसाल में क्या क्या होता है. किसी जानकार व्यक्ति के सामने अपना ज्ञान बघारना.
- नानी के टुकड़े खावे, दादी का पोता कहावे. लाभ किसी और से पाते हैं, गुण किसी और के गाते हैं.
- नानी के धन, बेइमानी के धन अउरी जजमानी के धन नाहीं रसेला. भोजपुरी कहावत. ननिहाल, बेइमानी और यजमानी का धन व्यर्थ ही जाता है.
- नानी क्वारी मर गयी, नवासे के नौ नौ ब्याह. खानदान में किसी ने कुछ देखा नहीं, पर खुद चले हैं तीसमारखां बनने.
- नानी खसम करे, धेवती दंड भरे. खसम करे अर्थात शादी कर ले. गलती कोई और करे और दंड कोई और भुगते.
- नानी मरी, नाता टूटा. ननसाल विशेष रूप से नानी से ही होती है. नानी के न रहने पर ननसाल का आकर्षण ख़त्म हो जाता है.
- नाप न तोल, भर दे झोल. ईश्वर जो देता है उसकी नाप तोल नहीं करता, भरपूर देता है.
- नापे सौ गज, फाड़े नौ गज. जो बातें बहुत करता है और काम कम करता है.
- नाम काल नहीं खाय. हर मनुष्य को अंततः काल के गाल में समाना है. लेकिन यह भी सच है कि काल कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो किसी के नाम को नहीं खा सकता.
- नाम क्या शकरपारा, रोटी कितनी खाई दस बारा, पानी कितना पिया मटका सारा, काम कितना करोगे, मैं तो लड़का बेचारा. छोटे और पेटू लोगों के लिए.
- नाम गंगादास कमण्डल में जल ही नहीं. गुण के विपरीत नाम.
- नाम बड़ा ऊँचा, कान दोनों बूचा. नाम बहुत ऊंचा है और कान कटे हुए हैं (हैसियत कुछ नहीं है).
- नाम बड़े और दर्शन छोटे. (नाम मोटा, दरशन खोटा). नाम अधिक हो पर वास्तव में कुछ भी न हों तो.
- नाम बढ़ावे दाम. जिसका अधिक नाम हो जाता है उसकी कीमत बढ़ जाती है. आजकल भी बड़ी बड़ी ब्रांड अपने नाम का खूब फायदा उठाती हैं.
- नामरदी तो खुदा की देन है, मार मार तो कर. किसी कायर पुरुष को उलाहना दी जा रही है कि खुदा ने तुझे नामर्द (कायर) बनाया है, तू आगे बढ़ कर मार नहीं सकता तो मार मार चिल्ला तो सकता है.
- नामी चोर मारा जाए, नामी शाह कमा खाए. जो चोर अधिक प्रसिद्ध हो जाता है वह अंततः मारा जाता है (क्योंकि वह प्रशासन की निगाह में आ जाता है), जबकि जो बनिया या हाकिम अधिक नामी होता है वह अपने नाम के बल पर खूब कमाता है.
- नामी बनिया का नाम बिकता है. जिस व्यापारी का नाम हो जाता है उस के नाम से माल बिकता है. आजकल के लोग तो खास तौर पर ब्रांड के पीछे पागल रहते हैं.
- नामी मरे नाम को, पेटू मरे पेट को. प्रसिद्द आदमी अपनी प्रसिद्धि को और बढाने के लिए मरता है और पेटू आदमी खाने के लिए मरा जाता है.
- नार सुलक्खनी कुटुम छकावे, आप तले की खुरचन खावे. सुलक्षणा नारी पहले सारे कुटुंब को खिला देती है उसके बाद जो बचता है उसे खा कर संतोष कर लेती है.
- नारी अति बल होत है, अपने कुल की नाश. जिस कुल में नारी को अत्यधिक अधिकार दे दिए जाएं उस कुल का नाश हो जाता है.
- नारी के बस भए गुसाईं, नाचत हैं मर्कट की नाईं. गुसाईं – साधु सन्यासी (गोस्वामी का अपभ्रंश है), मर्कट – बंदर. नकली साधु का मज़ाक उड़ाने के लिए (जो स्त्री के वश में हो कर बंदर की तरह नाच रहे हैं).
- नारी मुई भई सम्पति नासी, मूड़ मुड़ाए भए सन्यासी. तुलसीदास जी ने दो तरह के सन्यासियों का वर्णन किया है. एक वे जो सत्य की खोज के लिए संसार को त्याग कर सन्यासी बन जाते हैं, दूसरे वे जो स्त्री के मरने और सम्पत्ति के नाश के कारण मजबूरी में सर मुंडा कर सन्यासी बन जाते हैं.
- नाली की ईंट कोठे चढ़ी (फिर भी गंध आती है). किसी निम्न श्रेणी के इंसान को उच्च पद मिल जाए तो भी उस का नीच पन नहीं छूटता.
- नाली के कीड़े नाली में ही खुश रहते हैं. ओछी मानसिकता वाले लोग वैसे ही परिवेश में खुश रहते हैं.
- नासमझ को बात बताई, उसने ले छप्पर पे चढ़ाई. किसी नासमझ को भेद की बात नहीं बतानी चाहिए (वह उसे छप्पर पर चढ़ा देगा अर्थात सारे में फैला देगा).
- निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छबाय, बिन साबन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय. आम आदमी अपनी निंदा सुनना नहीं चाहता लेकिन कबीरदास कहते हैं कि निंदा करने वाले को अपने घर में कुटी बना कर उसमें रखो. जो निंदा वह करे उससे सीख ले कर अपने स्वभाव को निर्मल बनाया जा सकता है.
- निकली हलक, पडी खलक. हलक – गला, खलक – ब्रह्मांड. बात मुँह से निकल जाए फिर वह अपने वश में नहीं रहती (सारे में फ़ैल जाती है).
- निकली होंठों, चढी कोंठों. मुंह से निकले बात तुरन्त सारे में फ़ैल जाती है (इसलिए मनुष्य को सोच समझ कर बोलना चाहिए). कोठा माने छत.
- निकली होंठों, हुई पोटों. ऊपर वाली कहावत की भांति.
- निकौड़िये गए हाट, ककड़ी देखे जियरा फाट. निकौड़िए – जिनके पास कौड़ी भी न हो. बिना पैसा कौड़ी के बाज़ार गए. वहाँ ककड़ी देख के हृदय फट रहा है (खाने का मन है पर खरीद नहीं सकते).
- निन्यानवे के फेर में जो पड़ा वो गया. इसके पीछे एक कहानी है. एक नेक लकड़हारा जंगल से लकड़ियाँ बीन कर दो पैसे कमाता था और अपने परिवार का पेट पालता था. वह बड़ा ईश्वर भक्त था, हर समय भगवान का नाम लेता था और खुश रहता था. एक दिन भगवान विष्णु ने नारद जी से कहा कि देखो यह मेरा सबसे बड़ा भक्त है, इतनी कठिन परिस्थितियों में भी मेरा नाम लेता है और खुश रहता है. नारद जी बोले ठीक है प्रभु, कल से नहीं रहेगा. उस रात नारद जी ने एक थैली में निन्यानवे रुपये रख कर उस के आंगन में डाल दिए. सुबह पति पत्नी उठे तो रुपयों की थैली देखी. जल्दी जल्दी गिने, निन्यानवे थे. अब दोनों भजन कीर्तन भूल कर इसी फेर में लग गए कि एक एक पैसा बचा कर कैसे सौ रुपये पूरे कर लें.
- निपट कठिन हठ मोसे कीन्हीं रे सैयां. किसी चाहने वाले ने कोई बहुत कठिन शर्त रख दी हो तो.
- निपूती का घर सूना, मूरख का हृदय सूना, दरिद्री का सब कुछ सूना. जिसके कोई संतान न हो उसका घर सूना होता है, मूर्ख व्यक्ति का हृदय सूना होता है (क्योंकि उस में भावनाएँ नहीं होतीं) पर दरिद्र व्यक्ति का सब कुछ सूना है.
- निर्धन के धन गिरधारी. जिसके पास कोई धन नहीं, ईश्वर उसका धन है.
- निष्ट देव की भिष्ट पूजा. (दुष्ट देव की भ्रष्ट पूजा). जैसे निकृष्ट देवता वैसी भ्रष्ट उनकी पूजा.
- निहाई की चोरी, सुई का दान. निहाई – पक्के लोहे की बड़ी सी सिल जिस पर रख कर लोहे को काटते व पीटते हैं. कहावत ऐसे ढोंगी दाताओं के लिए कही गई है जो अपने काले धंधों से खूब पैसा कमाते हैं और दिखावे के लिए उसमें से जरा सा दान कर देते हैं.
- नींद न जाने टूटी खाट, प्यास न जाने धोबी घाट, भूख न जाने कच्चा भात, प्रीत न जाने जात कुजात. पहले के जमाने में समाज में यह नियम था कि विवाह सम्बन्ध अपनी जाति वालों से ही करना चाहिए. उस समय दूसरी जाति में विवाह करना (विशेषकर नीची जाति में) बहुत आपत्तिजनक माना जाता था. तब यह कहावत बनाई गई कि प्यार करने वाले ऊंची नीची जाति नहीं देखते. इस कथन को अधिक प्रभावी और मनोरंजक बनाने के लिए अन्य तीन बातें भी जोड़ दी गईं कि नींद आ रही हो आदमी टूटी खाट नहीं देखता, प्यास लगी हो तो धोबीघाट का गंदा पानी भी पी लेता है और भूख लगी हो तो कच्चा भात भी खा लेता है.
- नीकी हु फीकी लगे, बिन अवसर की बात. बिना उचित अवसर के कही गई अच्छी बात भी बुरी लग सकती है.
- नीच की दोस्ती पानी की लकीर, शरीफ की दोस्ती पत्थर की लकीर. नीच की दोस्ती पानी की लकीर की तरह क्षण भंगुर होती है जबकि सज्जन की दोस्ती अमिट होती है.
- नीच न छोड़े निचाई, नीम न छोड़े तिताई. जिस प्रकार नीम अपना कड़वापन नहीं छोड़ सकता, उसी प्रकार नीच आदमी नीचता नहीं छोड़ सकता.
- नीचन कूटन, देवन पूजन. नीच आदमी पिट कर ठीक रहता है और देवता पूजा से प्रसन्न रहते है.
- नीचे की साँस नीचे, ऊपर की साँस ऊपर. आश्चर्य चकित रह जाना.
- नीम न मीठा होए चाहे सींचो गुड़ घी से. (इसकी पहली पंक्ति इस प्रकार है – जाको जौन स्वभाव मिटे नहिं जी से). नीम के पेड़ को गुड़ और घी से सींचो तब भी मीठा नहीं हो सकता. किसी भी व्यक्ति का स्वभाव बदलता नहीं है.
- नीम हकीम खतरा ए जान, भीतर गोली बाहर प्रान. नीम – आधा (उर्दू). अधकचरे हकीम या डॉक्टर से इलाज कराने में जान का खतरा होता है. हो सकता है कि गोली भीतर जाए तो प्राण बाहर आ जाएं.
- नीम हकीम खतरा-ए-जान, नीम मुल्ला खतरा-ए-ईमान. उर्दू में नीम का मतलब है आधा. नीम हकीम याने अधूरी जानकारी रखने वाला हकीम. उससे इलाज कराने में जान का खतरा है. नीम मुल्ला माने धर्म के विषय में अधूरी जानकारी रखने वाला धर्मगुरु. उससे आप धर्म की शिक्षा लेंगे तो धर्म का सत्यानाश हो जाएगा.
- नीयत तेरी अच्छी है तो, किस्मत तेरी दासी है, कर्म तेरे अच्छे हैं तो घर में मथुरा काशी है. कोई भी काम अच्छी नीयत से किया जाए तो सफलता निश्चित रूप से मिलती है. व्यक्ति अगर अच्छे कर्म करता है तो उसका घर ही तीर्थ बन जाता है.
- नीयत सही तो मंजिल आसान. इरादा नेक हो तो मंजिल अवश्य मिलती है.
- नील का टीका, कोढ़ का दाग, ये कभी नहीं छूटते. धोबी लोग कपड़े पर निशान लगाने के लिए जो स्याही प्रयोग करते हैं उस का दाग छूटता नहीं है और कुष्ठरोग का सफ़ेद दाग भी नहीं छूटता. (कहावत उस समय की है जब कुष्ठ रोग का कोई इलाज नहीं था).
- नीलकंठ कीड़ा भखें, मुखहिं विराजे राम, खोट कपट क्या देखिए, दर्शन से है काम. नीलकंठ (एक पक्षी जिस का गला नीला होता है) को देखना शुभ माना जाता है (क्योंकि शिव जी को भी नीलकंठ कहा जाता है). नीलकंठ पक्षी कीड़े मकोड़े खाता है लेकिन ईश्वर का प्रतिबिम्ब मान कर लोग उस के दर्शन करते हैं. कहावत का तात्पर्य यह है कि किसी के खोट (कमियाँ) न देख कर उस के गुण देखना चाहिए.
- नीलकंठ जिस सिर मंडरावे, मुकुटपति सों लाभ वो पावे. जिस के सर पर नीलकंठ मंडरा जाए उसके राजा होने का योग होता है.
- नीला कंधा बैंगन खुरा, कभी न निकले बरधा बुरा. जिस बैल के कंधे नीले और खुर बैंगनी हों वह निश्चित रूप से अच्छा ही होता है. (घाघ की कहावतें)
- नेकनामी देर से, बदनामी जल्दी. प्रसिद्धि मुश्किल से और देर से मिलती है जबकि बदनामी जलदी मिल जाती है.
- नेकी और पूछ पूछ. कोई व्यक्ति किसी भिखारी के पास जाकर पूछे, क्यों भैया सौ रूपए लोगे क्या? तो वह कहेगा – क्या बाबूजी! नेकी और पूछ पूछ. (चुपड़ी और दो दो), (गुड़ से मीठी क्या ईंटें).
- नेकी कर कुँए में डाल. यदि आप किसी के ऊपर उपकार करते हैं तो उसे करके भूल जाइए उससे यह अपेक्षा मत करिए कि उसे आपका एहसान मानना चाहिए या एहसान चुकाना चाहिए. आजकल के लोग नेकी कम करते हैं या नहीं करते हैं पर उसका विज्ञापन जरूर करते हैं. उनके लिए यह कहावत इस प्रकार होनी चाहिए – नेकी कर न कर, अखबार में जरूर डाल.
- नेकी करो, खुदा से पाओ. किसी के साथ अच्छाई करने का प्रतिफल भगवान देता है.
- नेकी नौ कोस, बदी सौ कोस. आप जो नेकी करोगे उसकी कहानी तो नौ कोस तक ही कही जाएगी पर अगर किसी के साथ कोई बदी की है (बुरा किया है) तो उसके किस्से सौ कोस तक फ़ैल जाएंगे.
- नेकी बदी साथ जाला. भोजपुरी कहावत. जो कुछ भी भलाई बुराई (पाप, पुण्य) मनुष्य करता है सब परलोक में उस के साथ जाती हैं.
- नेह फंद में जो फंस जावे, उस नर को न सीख सुहावे. जो मनुष्य प्रेम के फंदे में फंस जाता है उसे सीख अच्छी नहीं लगती.
- नैन लगे तब चैन कहाँ है. नैन लगना – आँखें लड़ना, प्रेम हो जाना. किसी से प्रेम हो जाए तो मन को चैन नहीं रहता.
- नैना देत बताय सब हिय को हेत अहेत, जैसे निर्मल आरसी भली बुरी कहि देत. हिय – हृदय. आप हृदय से किसी का भला चाहते हैं या बुरा यह आँखें बोल देती हैं, जिस प्रकार नाई की आरसी (एक प्रकार का छोटा दर्पण) में अच्छा बुरा सब दिख जाता है.
- नौ की लकड़ी नब्बे खर्च. चीज़ सस्ती हो पर लाने में खर्च अधिक हो रहा हो तो.
- नौ जाने छौ जनबे न करे. भोजपुरी कहावत. छह की गिनती नौ से पहले आती है. जाहिर सी बात है कि जिसे नौ की गिनती आती है उसे छह की तो जरूर आनी चाहिए. कोई अगर नौ जानता है और छह नहीं जानता (अर्थात आरम्भिक ज्ञान नहीं है पर आगे का ज्ञान है) तो यह कहावत कही जाती है.
- नौ दिन चले अढ़ाई कोस. बहुत धीमी गति से काम होना.
- नौ नगद न तेरह उधार. कोई व्यक्ति तेरह रूपये बाद में देने को कहे उस के मुकाबले अगर नौ रूपये नकद मिल रहे हों तो अधिक अच्छे हैं. इंग्लिश में कहावत है – One in the hand is better than two in the bush.
- नौ लावे तेरह की भूख. मनुष्य को जब थोड़ा सा मिल जाता है तो उसे और अधिक की लालसा होती है.
- नौ सौ चूहे खाय बिलैया हज को चली. (नौ सौ चूहे खाय बिलाई बैठी तप पे) यदि किसी व्यक्ति ने जीवन भर खूब कुकर्म किए हो और बाद में वह धर्म-कर्म का नाटक करने लगे तो यह कहावत कही जाती है. भोजपुरी में कहावत है – सत्तर मुस खाइके बिलाइ भईली भगतीन.
- नौकर ऐसा चाहिए कबहूँ घर न जाय, काम करे सब ताव से भीख मांग कर खाय. सभी लोग ऐसा नौकर चाहते हैं जो कभी छुट्टी न ले और न ही घर जाए. काम पूरे जोश से करे पर तनख्वाह न ले.
- नौकर का चाकर, चाकर का कूकुर. बड़े हाकिमों के महकमे के जो छोटे से छोटे कर्मचारी भी अपने को तुर्रमखां समझने लगते हैं, उनका मजाक उड़ाने के लिए व उन की हैसियत जताने के लिए उन को यह बताया जा रहा है कि साहब के नौकर के नौकर और उस के कुत्ते जितनी तुम्हारी औकात है, अपने को ज्यादा मत समझो. जो लोग ज्यादा ही नाराज होते हैं के इसके आगे बोलते हैं – और कूकुर की पूंछ का बाल. कहीं कहीं इस कहावत में चाकर का कूकुर के स्थान पर चाकर का चूतड़ बोला जाता है लेकिन इस में असभ्यता झलकती है.
- नौकरी की जड़ आसमान में. नौकरी का कोई भरोसा नहीं होता कब चली जाए.
- नौकरी की जड़ धरती से सवा हाथ ऊंची. नौकरी का कोई भरोसा नहीं होता कब चली जाए.
- नौकरी ताड़ की छांव. ताड़ के पेड़ की छाया बहुत थोड़ी और अपर्याप्त होती है. इसी प्रकार नौकरी की कमाई अपर्याप्त होती है (पहले के समय में नौकरी में बहुत कम वेतन मिलता था). रिश्वत लेने वाले कर्मचारी रिश्वत को सही ठहराने के लिए भी ऐसा कहते हैं.
- नौकरी न कीजिए घास खोद खाइए, और खोदें आस पास आप दूर जाइए. नौकरी करने से अच्छा है घास खोद कर अपना काम चलाया जाए. आस पास न मिले तो चाहे दूर जा कर खोदना पड़े.
- नौकरी में सात खाविंद रिझाने पढ़ते हैं. बहुत सी स्त्रियों को यह शिकायत होती है कि उन्हें अपने पति को खुश रखने के लिए बहुत यत्न करने पड़ते हैं. उन स्त्रियों को समझाने के लिए पति यह बताते हैं कि नौकरी करना इतना कठिन है जितना एक दो नहीं सात पतियों को खुश करना.
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information credit:Dr Sharad Agrawal
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