गोदना एक ऐसा शब्द है जो पॉलिनेशियन मूल का है और कैप्टन कुक ने वहां अपनी यात्रा के बाद इसे पेश किया था। टोटू का अर्थ है त्वचा को चिन्हित करना या पंचर करना और ताहिती शब्द टाट एन से लिया गया है, जो शब्द का एक नया रूप है जिसका अर्थ है प्रहार करना। गोदने की आदिम विधि में ऑपरेशन चारकोल पेस्ट में डूबी नुकीली हड्डी द्वारा किया जाता था, लकड़ी के टुकड़े से मांस में पीटा जाता था और फिर अमिट को पीछे छोड़ते हुए पंचर से वापस ले लिया जाता था।पुरातात्विक साक्ष्य हमें पूर्व-ऐतिहासिक काल में टैटू जैसी प्रथा के अस्तित्व का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं देते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि लगभग 3300 ईसा पूर्व के एक ममीकृत मानव शरीर, हिममानव की त्वचा पर कुछ निशान टैटू हैं।
भारत में टैटूर कुछ पौधों या जड़ी-बूटियों के रस के साथ मिलाकर वर्णक तैयार करते थे , नारियल के खोल को जलाकर प्राप्त किए गए चारकोल पाउडर को बारीक पीसकर या दीपक काला या कालिख और पानी या दूध या दोनों को मिलाकर तैयार किया जाता था। टैटू किये हिस्से में सूजन आने पर कुछ जड़ी-बूटियों के पत्तों के रस में हल्दी मिलाकर अरंडी के तेल में अच्छी तरह घिसकर लगाने से दर्द और सूजन कम हो जाती है।
यह कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी की भुजा को अपने हथियारों और सूर्य और चंद्रमा और तुलसी के पौधे की आकृति में उनके लिए एक सुरक्षा के रूप में गोद लिया था, जब वह राक्षसों के खिलाफ अपने अभियान पर थे और उन्होंने ये आदेश दिया की उनके जिन भक्तों के पास ये चिन्ह होंगे वे सदा हर खतरे और बुराई से मुक्त रहेंगे।
गोदना एक दर्दनाक ऑपरेशन है, इसलिए इसे त्वचा की संवेदनशील सतह पर नहीं किया जाता है। यह शरीर के उन हिस्सों तक ही सीमित है जहां दर्द को सहन करने के लिए त्वचा काफी सख्त होती है।
भारत में प्राचीन काल में अपराधी को सजा के रूप में उसके माथे पर गोदना गुदवाया जाता था।
information source: Ancient sciences and archaeology vol-IV
executive editor: Dr.M.D. Sampath
editor:Dr.Smt.N.Pankaja
Swapna Samel