भारतीय ऐतिहासिक शिरस्त्राण
हेलमेट का प्राचीन भारत के ग्रंथों में शिरस्त्राण के नाम से उल्लेख मिलता है जिसे सर की सुरक्षा के लिए युद्ध में योद्धा पहना करते थे इसके बाद पहली शताब्दी और दूसरी शताब्दी के शासकों द्वारा भी हेलमेट का उपयोग किया गया जिसका पता उस समय के प्राप्त सिक्कों पर अंकित चित्रों से चलता है। इतिहासकारों के अनुसार दूसरी शताब्दी के शुंग राजवंश पहले ऐसे शासक थे जिन्हे हेलमेट पहने योद्धा के रूप में सिक्कों पर चित्रित किया था। पहले के समय में हेलमेट सादे हुआ करते थे फिर समय के साथ इनमे कई बदलाव किये गए जैसे गर्दन के हिस्से को सुरक्षित करने के लिए पास पास चेनकी डोरियन जोड़ी गयी, मध्य काल में कान और नाक क हिस्से को भी सुरक्ष कवच दिया गया, और राजाओं द्वारा पहने जाने वाले हेलमेटों को बाहरी सतह से ज़्यादा मज़बूत और अंदर से रूई से भर कर आकर्षक और आरामदायक बनाया गया।
16 वीं और 17 वीं शताब्दी में हेलमेट लम्बे और शंक्वाकार होते थे। हेलमेट के ऊपरी हिस्से से एक खिसकाए जा सकने वाला पर्दानुमा फ्लैप जुड़ा होता था जो गला और कन्धों को सुरक्षित करता था।
भारतीय हेलमेटों की मुख्य विशेषताएं:
1 गुंबद के आकार का या अर्धगोलाकार कटोरा
2 कल्गी या स्पाइक या शिखर से घिरा हुआ कटोरा
3 नाक को सुरक्षित करने वाला स्लाइडिंग हिस्सा
4 चेन मेल का एक टुकड़ा जो हेडपीस से जुड़ा होता है और गर्दन और कंधों की रक्षा करता है।
5 गोदी हुई या सजी हुई किनारें
6 अंदर रेशम की परत।
तरह तरह के हेलमेट
मुख्यता भारत में प्राचीन काल और मध्य काल में इस तरह के हेलमेटों का प्रयोग होता था : खुद ,बेदाह, मिघफ़र, चिचा, पगड़ी ,मंगोल आदि।
भारत के कुछ ऐतिहासिक शिरस्त्राण (हेलमेट)
1 कुल्ह- जिरह प्रकार का राजस्थान से 15 वीं शताब्दी के बाद का हेलमेट।
2 खुद प्रकार का राजस्थान से 17 वीं शताब्दी के बाद का हेलमेट।
3 खुद प्रकार का उत्तर भारत से 17 वीं शताब्दी के बाद का हेलमेट।
4 खुद प्रकार का जयपुर से 17 शताब्दी के बाद का हेलमेट।
5 खुद प्रकार का लाहौर से प्रारंभिक 17 वीं शताब्दी का हेलमेट।
6 खुद प्रकार का उत्तर भारत से प्रारंभिक 17 वीं शताब्दी का हेलमेट।
7 खुद प्रकार का उत्तर भारत से 16 वीं शताब्दी का हेलमेट।
8 उत्तर भारत का यूरोपियन प्रभाव का 19 वीं शताब्दी का हेलमेट।
9 उत्तर भारत का 17 वीं शताब्दी के बाद का हेलमेट।
10 हैदराबाद का 19 वीं शताब्दी का हेलमेट