जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में सन 1890 में हुआ। बालयकाल में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण व्यवसाय एवं गृहस्थी का पूरा भार इनके कन्धों पर आ गया, फलस्वरूप प्रसाद जी को स्कूली शिक्षा केवल आठवीं कक्षा तक ही मिल पाई। किन्तु अपनी लगन से इन्होंने हिंदी, संस्कृत,पाली, उर्दू, प्राकृत और अंग्रेज़ी भाषाओँ और उनके साहित्यों का समुचित ज्ञान घर पर ही प्राप्त कर लिया। इतिहास, दर्शन, धर्मशास्त्र, पुरातत्व आदि के ये प्रकांड विद्वान थे। सन 1937 में 15 नवंबर को अल्पायु में ही क्षयरोग से उनकी मृत्यु हो गयी।
जयशंकर प्रसाद की प्रतिभा सभी विषयों में दिखाई देती थी जिसका ज्वलंत उदाहरण इनके काव्य, उपन्यास, नाटक, कहानी और निबंध आदि में मिलता है। इनकी सबसे पहली कविता 'भारतेन्दु' नामक पत्रिका में सन १९०६ में प्रकाशित हुई। इनके बाद ' इन्दु' नमक एक पत्रिका का इन्होने स्वयं प्रकाशन शुरू किया। इनके प्रमुख नाटकों के नाम हैं -अजात शत्रु , स्कंदगुप्त, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वाकमिनी। इन्होंने दो उपन्यास लिखे - कंकाल और तितली। इरावती नामक उपन्यास उनहोंने प्रारम्भ किया लेकिन पूरा न कर पाए। इनके कहानी -संग्रह हैं - आंधी, इंद्रजाल, प्रतिध्वनि, छाया और आकाशदीप। जइसँकर प्रसाद जी की सबसे प्रसिद्ध रचना 'कामायनी' महाकाव्य है। काव्य की अन्य पुस्तकें हैं --आंसू ,झरना और लहर।
काव्य और कला तथा अन्य निबंध में इनके विचारप्रधान निबंध संकलित हैं।
जयशंकर प्रसाद जी ने अपनी अन्य रचनाओं की भांति कहानियां भी अधिकतर भारतीय संस्कृत अथवा भारत के मध्यमयुगीन इतिहास की पृष्ठभूमि पर लिखी हैं। इन्होंने उपन्यासों के प्रतिकूल मुख्यतः आदर्शवादी कहानियां ही लिखी हैं जिनमे ऐतिहासिक वातावरण के सजीव चित्रण की ओर पूरा ध्यान दिया है। इन्होंने सभी कहानियों में संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है जो कहीं कहीं कठिन भी हो गयी है।
जयशंकर प्रसाद की ऐसे ही कहानी संग्रह है हिंसा है उनकी एक प्रसिद्ध कहानी जिसका शीर्षक है -- ममता
जिसमे ऐतिहासिक पृष्ठभूमि बड़े ही जीवंत रूप में प्रस्तुत की गयी है।