सियारामशरण गुप्त का जन्म सं १८९५ में चिरगांव, जिला झाँसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। ये राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त के छोटे भाई थे। इनकी शिक्षा घर पर ही हुई। घर पर ही इन्होंने कई भाषाएं सीखीं और ज्ञान अर्जित किया। जीवनभर ये बड़े भाई के अनुयायी रहे। इनके परिवार में राम भक्ति की परम्परा थी। भारत की तरह ये बड़े भाई के भक्त थे। परिवार के साहित्यिक वातावरण ने इनकी प्रतिभा का बहुमुखी विकास किया था। इनका साहित्य गुण और परिमाण दोनों ही दृष्टियों से समृद्ध है। सं १९६३ में दिल्ली में इनकी मृत्यु हुई।
सियरामशरण गुप्त सफल उपन्यासकार होने के साथ -साथ उत्कृष्ट कवि भी थे।इन्होंने नाटक, कहानी और निबंध भी लिखे जिनके लिए इन्हें पर्याप्त ख्याति मिली। इनके उपन्यासों के नाम हैं -- गोद, नारी और अंतिम आकांशा। पुण्य पर्व और उन्मुक्त इनके लिखे नाटक हैं। इनके एकमात्र कहानी संग्रह का नाम है 'मानुषी'। 'झूठ सच' में इनके निबंध संकलित हैं। इनकी मुख्य काव्य कृतियों के नाम हैं -- मौर्य विजय , आर्द्रा, पाथेय, मृण्मयी, बापू , उन्मुक्त,आत्मोत्सर्ग और नकुल।
महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व और दर्शन का गुप्त जी पर गहरा प्रभाव था। गाँधीवादी विचारधारा के ये अत्यंत कलाकार हैं। इनकी भाषा सरल और जीवंत है।
इनकी लिखी कहानी 'काकी' कहानी सियारामशरण गुप्त जी की प्रतिनिधि रचना है। इसे अत्यंत लोकप्रियता मिली है। सरल सहज भाषा शैली में लिखी गयी यह कहानी हिंदी की अमर रचना बन चुकी है।
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संपादक : प्रभाकर दिवेदी