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भगवान विष्णु के वराह अवतार मूर्ति

भगवान विष्णु के वराह अवतार मूर्ति , Earan, Boar Statue, with rare inscription on throat, Madhya Pradesh

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के ऐराण नामक जगह पर एक प्राचीन विशाल 14 फिट लंबी और 11 फिट ऊंची मूर्ति है,जो भगवान विष्णु के वराह अवतार को दर्शाती है। शोधकर्ताओं,इतिहासकरों और इस पर लिखी लिपि के अनुसार यह विशाल मूर्ति राजा हुना तोरमाना द्वारा बनवाई गयी थी। इस मूर्ति कि कई खासियतें हैं, जैसे कि यह भारत में एक मात्र भगवान् विष्णु कि वरहा अवतार की मूर्ति है।
आमतौर पर प्राचीन लेख किसी दीवार पर,पत्थर पर,खंम्बों पर या कभी कभी भवन कि छत पर लिखे होते थे पर यहाँ इस मूर्ति से जुड़ी जानकारी को मूर्तिकार ने वरहा कि गर्दन पर लिखा है जो बहुत अनोखा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह संस्कृत और ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है। गौर करने वाली बात है  कि यजना वरहा कि जीभ को बाहर कि तरफ निकला हुआ बनाया गया है जिस पर देवी सरस्वती विराजमान हैं। इस वराह मूर्ति के गले में एक चौड़ी सी माला भी बनायी गई है जिस में मूर्तिकार ने बड़ी ही बारीकी से 28 गोलों के डिज़ाइन पैटर्न को सेट किया है जिस में से 27 गोलों में नर- नारी कि आकृति बनी हुई है जो अर्धललितासन मुद्रा में बैठे हैं जो हिन्दू राशि चक्र के 27 सितारों को दर्शाते हैं सबसे रोचक बात है कि उसमें से एक गोले में वृश्चिक की आकृति बनी हुई है जो शायद इस बात को सांकेतिक रूप से दर्शाना हो की इस यजनावरह मूर्ति कि स्थापना वृश्चिक राशि काल में हुई हो जो कि हिन्दू धर्म में बहुत शुभ मानी जाती है और यह उस राशि का चिन्ह हो। शोधकर्ताओं की अनुसार वृश्चिक राशि काल बहुत शुभ माना जाता है और इस समय में देवी,देवताओं,ब्रहमणों और अन्य पुण्य आत्माओं के नाम पर दान,उपहार देना बहुत फलदायी होता है और इस बात कि बहुत सम्भावना है कि उस समय में यजनावरह के मूर्तिकार और राजा को इस राशिकाल के प्रभाव के बारे में जानकारी हो, जिस वजह से उन्होंने इस मूर्ति कि स्थापना खासतौर पर वृश्चिक काल में करवाई हो क्योंकि यजनावरह के गले पर अंकित लिपि के अनुसार यजनावरह कि स्थापना फाल्गुन के 10 वें दिन हुई थी,हो सकता है उस बार वृश्चिक राशि का विषुव मुहूर्त फाल्गुन के 10 वें दिन पड़ा हो. इस मूर्ति कि एक और विशेषता है, इस मूर्ति के पैरों के पास बीच में सागर और साँपों का दृश्य बयाना गया है जिसके पीछे का कारण शायद यह होगा कि वरहा भगवान विष्णु का जल से अवतरित अवतार है जिसको मूर्ति के साथ दर्शाया गया है। यह प्राचीन मूर्ति हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए अनमोल धरोहर,जानकारी और प्रेरणा का स्रोत है जो हमें यह समझने में मदद करता है की प्राचीन भारतीय लोगों को  खगोलीय घटनाओं  और गृह नक्षत्रों की सटीक जानकारी थी।     
 

pic credit: kevinstandagephotography.wordpress.com

information credit:  Book -Ancient Sciences And Archaeology, by-Dr. M.D.Sampatha,Dr. Smt Pankaja,Smt S.Saroja,Dr. Smt S.Kayarkanni and Haripriya Rangarajan

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