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ravindranath thakur ka jeevan parichay

Ravindranath Thakur ka jeevan parichay hindi mein , रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जीवन परिचय

रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जीवन परिचय

 रवीन्द्रनाथ ठाकुर विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और हमारे राष्ट्रगान को लिखने वाले महान कवी और लेखक हैं । उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म बंगाल के एक अत्यंत सम्पन्न और सुसंस्कृत ब्राह्मण परिवार में 6  मई, 1861  को हुआ था। उनकी शिक्षा दीक्षा घर पर ही हुई।  बचपन में ही हर विषय की शिक्षा देने के लिए अलग अलग अध्यापक उन्हें घर पर ही पढ़ाते थे। इससे छोटी उम्र में ही वे सभी विषयों के ज्ञाता हो गए।  प्रकृति के निकट रहने के कारन उनके भावुक मन का कवि जाग उठा और वे छोटी उम्र में ही कविता लिखने लगे। कुछ बड़े हुए तो उन्हें बैरिस्टरी पढ़ने के लिए विदेश भेजा गया। लेकिन स्कूल कालेज की चार दीवारी उन्हें बाँध न पाई और वे परीक्षा में बैठे बिना ही स्वदेश लौट आए।

देश विदेश में भर्मण के अतिरिक्त रवीन्द्रनाथ ने बंगाल के गावों में भी बहुत भर्मण किया। अपने अनुभवों को वे कहानियों में उतरने लगे। फिर तो रवि - किरणों की भांति रवींद्र प्रतिभा भी विकास पाने लगी।  कविता, नाटक, उपन्यास, यात्रा-विवरण, कहानी, निबंध, भाषण, चित्रकला आदि में उनकी प्रतिभा प्रस्फुटित होने लगी। सं 1912  में उनकी कविताओं का संग्रह 'गीतांजलि'प्रकाशित हुआ जिसे 1913  में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले प्रथम एशियाई  थे।  उनकी मृत्यु 7  अगस्त, 1941  को हुई।

साहित्य के अतिरिक्त रविंद्र नाथ ठाकुर का योगदान चित्रकला, शिक्षा, राजनीती एवं संगीत के क्षेत्र में भी मन जाता है। उनके चित्रों की भूरि-भूरि प्रशंसा होती रहती है। विश्वभारती नाम से शांतिनिकेतन में स्थापित विश्वविद्यालय की शिक्षा पद्धति संसार में अद्वितीय है।

अंग्रेज़ों के शासनकाल के दौरान उन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए संघर्ष किया था। 

भारत का राष्ट्रगान  'जान गण मन 'गीत उनका ही लिखा हुआ है।

रवीन्द्रनाथ जी ने एक हज़ार से अधिक कविताएंऔर दो हज़ार गीत लिखे हैं। गीतांजलि के अतिरिक्त नैवेद्ध, पूरबी,वलाका,क्षणिका, चित्र और संध्या संगीत आदि उनके काव्य संग्रह हैं। उनके प्रमुख उपन्यास हैं -- गोरा, घरे बाइरे, चोखेर बालि, योगायोग आदि। उन्होंने कुल 84  कहानियां लिखी हैं जो गल्पगुच्छ नाम से तीन भागों में संकलित हैं।

उनके प्रसिद्द कहानी संग्रह में से सबसे अधिक लोकप्रिय कहाँ है "काबुलीवाला" यह कहानी उनकी सर्वश्रेष्ठ कहानियों में गिनी जाती है। ये कहै किसी भी प्रकार से दुखांत नहीं है।  इस कहानी में एक पिता पुत्री के स्नेह का सजीव चित्रण मिलता है। 

 

 

 

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