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मुरादाबाद शहर का नाम कैसे पड़ा , history of muradabad

मुरादाबाद का इतिहास , muradabad city ,peetal nagri

आज के समय मे पीतल नगरी के नाम से पहचाना जाने वाला  "मुरादाबाद " शहर की किसी समय मे अपनी एक अलग ही पहचान हुआ करती थी । जिसे आज हम मुरादाबाद ,ब्रास सिटी और पीतल नगरी के नामों से जानते हैं वो प्राचीन काल मे पांचाल राज्य का हिस्सा हुआ करता था जिस पर हर काल मे अनेकों राजाओं ने राज किया ।

इतिहासकारो के अनुसार गुप्तकाल मे इस जगह पर गुप्तवंश का और उनके बाद सम्राट हर्षवर्धन का भी राज रह चुका है, और इनके बाद मध्यकाल मे पृथ्वीराज चौहान ने भी इस क्षेत्र पर राज किया था ।  ऐसा बताया जाता है की मध्यकाल मे मुरादाबाद को "चौपाला" नाम से भी जाना जाता था जिसमे दीनदारपुरा, भदौरा,मानपुर-नारायनपुर और देहरी नाम के चार गाँव हुआ करते थे । सन 1632 के समय मे शाहजहां के राजकाल मे संभल के सूबेदार रुस्तम खान ने चौपाला के राजा रामसुख को आक्रमण कर युद्ध मे हरा दिया और चौपाला पर कब्ज़ा कर लिया उसके बाद वहां उन्होंने एक किले का निर्माण करवाया और चौपाला का नाम बदलकर रुस्तमाबाद करवा दिया जब इसकी जानकारी मुग़ल दरबार मे पहुंची तो मुग़ल शहंशाह के बेटे "राजकुमार मुराद" ने उस पर ऐतराज जताया और तुरंत रुस्तमाबाद से मुरादाबाद नाम रखने को कहा और इस तरह चौपाला से बना रुस्तमाबाद और रुस्तमाबाद से बन गया मुरादाबाद ।

अब बात करते हैं की मुरादाबाद को पीतल नगरी की पहचान कब और कैसे मिली , कहा जाता है की शाहजहाँ के शासनकाल मे शिल्पकारी को मुरादाबाद मे बढ़ावा दिया गया जिसके बाद ये जगह पीतल के व्यवसाय के लिए मशहूर हो गयी क्योंकि मुग़लकाल मे पीतल के बर्तनों पर नक्काशी का बहुत चलन था और तरह तरह के नक्काशीदार बर्तनों को राजा महाराजों के महलों मे सजावट मे इस्तेमाल किया जाता था इस वजह से ये व्यवसाय तेजी से विकसित होने लगा और अंग्रेजी हुकूमत के दौरान इस व्यवसाय को कलात्मक दृष्टि से  देखा जाने लगा और इन नक्काशीदार बर्तनों का दुनियाभर मे निर्यात किया जाने लगा । 20 वी शताब्दी मे पीतल के बर्तनों पर नक्काशी के साथ रंगाई का काम भी शुरू हो गया जिसका चलन आज भी है । मुरादाबाद ऐसे नक्काशीदार बर्तनों का एक बड़ा एक्सपोर्टर है , यहाँ की कई बड़ी एक्सपोर्ट  कम्पनियों को विश्व स्तर पर पहचान हासिल है ।

इसके बाद सन 1801 के आसपास तक मुरादाबाद अवध राज्य का हिस्सा रहा ।

इतिहासकार "गिरिराज नंदन" के अनुसार अंग्रेजों के समय मे सर सबसे ऊंचा औहदा हुआ करता था जो कुछखास लोगों को ही दिया जाता था और मुरादाबाद से चार लोगों को सर का खिताब हासिल था जिस वजह से मुरादाबाद को "sir producing city " भी कहा जाने लगा ।

अब बात करते हैं मुरादाबाद के पुरातत्व की तो यहाँ पर एक पुरातत्व संग्रहालय भी है जिस की स्थापना "कवी सुरेंद्र मिश्र मोहन" ने की थी जिस मे उन्होंने मुरादाबाद के आसपास के क्षेत्र की प्राचीन मूर्तियों के अवशेष ,प्राचीन लिपिया ,ग्रंथ,सिक्के जैसी चीज़ों का संग्रह किया है इस संग्रहालय मे कई महत्वपूर्ण हिस्टॉरिकल आर्टिफैक्ट्स मौजूद हैं

 

सन्दर्भ: रोहिलखण्ड इतिहास एवं संस्कृति

लेखक : गिरिराज नन्दन

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