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पजामे का कोई जिकर नहीं

किसी व्यक्ति के घर उसका एक मित्र आया. मित्र को उस शहर में कुछ लोगों से मिलने जाना था लेकिन रास्ते में उसका पजामा कीचड़ से गंदा हो गया था. उस व्यक्ति ने नया पजामा मित्र को पहनने को दिया और दोनों लोग चल पड़े. रास्ते में उसे लगा कि मित्र का पजामा बहुत अच्छा लग रहा है जबकि उस का पजामा घटिया लग रहा है. वह मन ही मन इस बात पर बहुत परेशान हुआ. वह कुछ कह नहीं पाया पर मन में कसमसाता रहा. जिन पहले सज्जन के घर ये लोग पहुँचे वहाँ उसने अपने मित्र का परिचय कराया कि ये मेरे मित्र फ़लाने फ़लाने हैं, अमुक शहर से आये हैं और ये जो पजामा पहने हैं ये मेरा है. मि
त्र ने बाहर निकल कर कहा, यार यह कहने की क्या जरूरत थी कि पजामा तुम्हारा है. दूसरे घर में गए तो वहाँ उन्होंने अपने मित्र का परिचय कराया और बोले कि जो पजामा ये पहने हैं ये इन्हीं का है. बाहर निकल कर मित्र ने फिर कहा कि यार यह अजीब बात है. यह कहने की क्या जरूरत है की पजामा मेरा है या तुम्हारा है. तीसरे घर में उन सज्जन ने मित्र का परिचय कराया और कहा कि ये जो पजामा पहने हैं वह न इनका है न मेरा है. मित्र बाहर निकल कर बहुत बिगड़े. बोले तुम पजामे का जिक्र ही क्यों करते हो. चौथे घर में उन्होंने मित्र का परिचय कराया कि ये श्री फलाने हैं, अमुक शहर से आए है और भाई पजामे का कोई जिकर नहीं. जहाँ कोई व्यक्ति बिना किसी उचित कारण बार बार अपना महत्व जताने की कोशिश कर रहा हो वहाँ मजाक में यह कहावत कही जाती है.

info credit:

डॉ. शरद अग्रवाल (एम.डी.)मेडिसिन
परामर्श चिकत्सक, बरेली, उ.प्र.,भारत

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