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राम जानकी मंदिर परिवार

बरेली के राम जानकी मंदिर मे रंग एकादशी को उल्लास के साथ मनाया गया

रंग भरी एकादशी भारतीय परंपरा का एक सुंदर रंग है इस दिन सभी भक्त भगवान शिव को पुष्प, अबीर और गुलाल से सजाते हैं। और इसी दिन राम भक्त भगवान राम और माता सीता को पुष्प और गुलाल से पूजते हैं और भगवान के साथ पुष्प और रंगों की होली खेलते हैं।

बरेली के राम जानकी मंदिर, जो की जनकपुरी मे स्थित है, डॉ शरद अग्रवाल जी, परामर्श चिकित्सक , सूद धरम कांटा, जी की अनूठी पहल जो की हर रविवार को सुबह 9 बजे राम जानकी मंदिर पहुचना है और हनुमान चालीसा और राम जी की पूजा करनी है, रविवार मंदिर परिवार के सभी लोग मंदिर पहुचे और भगवान की पूजा के पश्चात पुलों और गुलाल के साथ होली और रंग एकादशी का स्वागत किया । रविवार राम जानकी मंदिर परिवार हर रविवार को सुबह 9 बजे एकत्र होते हैं और राम जी, माता सीता और हनुमान जी की पूजा कर कुछ सांस्कृतिक और पौराणिक ज्ञान की बातों को भी एक दूसरे से साझा करते हैं जिससे अपनी संस्कृति और इतिहास के बारे मे बच्चों और बड़ों का ज्ञान वर्धन हो .

रंग एकादशी के दिन भक्तों का ध्यान आध्यात्मिक उन्नति और भगवान के प्रति भक्ति में केंद्रित रहता है। हालांकि, इस दिन का एक और आकर्षक पहलू है—होली का उत्सव, जो न केवल रंगों के उल्लास का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति में प्रेम, भाईचारे और सौहार्द की भावना को भी बढ़ावा देता है।

बरेली के प्रसिद्ध राम जानकी मंदिर में रंग एकादशी के दिन आयोजित होली का कार्यक्रम इस वर्ष बहुत ही भव्य और उमंगपूर्ण रहा। यहाँ के भक्तों ने भगवान राम और सीता की पूजा के साथ होली खेलने की परंपरा को मनाया। मंदिर परिसर में एक अलग ही दृश्य था, जहां भक्तों ने न सिर्फ भगवान के चरणों में रंग अर्पित किए, बल्कि एक दूसरे के साथ रंगों का आदान-प्रदान करते हुए यह पर्व धूमधाम से मनाया।

राम जानकी मंदिर में रंग एकादशी के दिन का कार्यक्रम आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक दोनों रूपों में एक अद्भुत संगम था। पहले भक्तों ने मंदिर में भगवान राम और सीता की विशेष पूजा की, जिसमें उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद, मंदिर के आंगन में एक बहुत ही रंगीन दृश्य देखने को मिला, जब भक्तों ने एक-दूसरे को गुलाल और रंग लगाकर होली का आनंद लिया।

होली सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह समाज में प्रेम और एकता की भावना को बढ़ावा देता है। बरेली के राम जानकी मंदिर में आयोजित होली कार्यक्रम में यह बात साफ तौर पर देखने को मिली। यहां पर सभी उम्र के लोग—बच्चे, युवा और बुजुर्ग—एक साथ मिलकर होली खेलते हुए दिखे। रंगों से सजे हुए मंदिर के प्रांगण में भक्तों के चेहरों पर मुस्कान और उल्लास था। यह दृश्य न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक था, बल्कि समाजिक एकता और भाईचारे का भी प्रतिक बन चुका था।

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