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बिन फेरे हम न होंगे तेरे : जानिये 4000 हज़ार साल पुराना है फेरों का रिवाज़ (4000 YEARS OLD WEDDIN

बिन फेरे हम न होंगे तेरे : जानिये 4000 हज़ार साल पुराना है फेरों का रिवाज़ indian wedding wow history

पूरी दुनिया के सभी देशों में शादी को समाज और संस्कृति  का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है जो सदियों से चला आ रहा है । जहाँ अलग अलग धर्म और अलग अलग समुदाय के लोग अलग अलग रीति रिवाज़ों के साथ शादी करते हैं ,जिसमे पुराने लोगों की माने तो हर रीति रिवाज़ का अलग मतलब और अलग महत्व होता है । ऐसा ही एक रिवाज़ है जो पूरी दुनिया की शादियों में निभाया जाता है ,पर हर धर्म और समुदाय के लोग इसे अलग तरीके से करते हैं ।

और वह है शादी के समय दूल्हा ,दुल्हन द्वारा लिए जाने वाले वचन हमारे देश में शादी के समय लिए जाने वाले वचन फेरों के समय लिए जाते हैं, जिन्हे कई दिलचस्प रीति रिवाज़ों के साथ अलग अलग तरीके से पूरा किया जाता है। जैसे नार्थ इंडियन हिन्दू शादियों में दूल्हा दुल्हन शादी के मंडप में अग्नि के चारों तरफ सात फेरे लेते हैं, पंजाबी सिख परिवार में फेरे तो लेते हैं पर मंडप में नहीं बल्कि गुरूद्वारे में, और यहाँ चार फेरे होते हैं,

तो बंगाली कल्चर में बड़े ही दिलचस्प तरीके से फेरों की रीत को पूरा किया जाता है,जहाँ दुल्हन को नीची लकड़ी की पटली(पीढ़ी) पर बिठा के उसके भाई उसे मंडप में लाते हैं और दुल्हन ने अपने चेहरे को पान के दो पत्तों से छुपा रखा होता है और ऐसे ही भाई उसे सात फेरे पूरे कराते हैं जिसके बाद ही वह पान के पत्ते हटाती है।

वहीँ महाराष्ट्रियंस में भी सात फेरे होते हैं जिस में पहले दुल्हन के आने तक मंडप में दूल्हे के सामने एक बड़ा सा कपड़ा कर दिया जाता है और दुल्हन के आने के बाद ही दूल्हा दुल्हन को देख सकता है।ऐसे ही साउथ इंडियंस में दूल्हा दुल्हन को फेरों से पहले हाथ पकड़ कर झूला झूलना होता है जिस के बाद वे हाथ पकड़े पकड़े सात फेरे लेते हैं।


ऐसे में सवाल ये उठता  है की आखिर ये फेरों का कांसेप्ट आया कहाँ से ???? शोधकर्ताओं के मुताबिक़ शादी के समय फेरे लेने के चलन की जड़ों का पता सबसे पुराने (1500 -1200  BCE ) कहे जाने वाले ऋग्वेद  के 10. 85  अद्ध्याय में विवाह सूकता के बारे में विस्तार से वर्णन है जिस्मे शादी से जुड़ी रस्मों रिवाज़, फेरों के महत्व और उनके मतलब को बहुत अच्छे से समझाया गया है।


 

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