क्या जर्मनी में मिली 40000 साल पूरानी मूर्ति भगवान विष्णु के अवतार नरसिम्हा की है?(is the 40000 y
क्या जर्मनी में मिली 40000 साल पूरानी मूर्ति भगवान विष्णु के अवतार नरसिम्हा की है? 40000 years old idol found in the cave of south germany of lord narsimha)?
आइये एक नज़र डालते हैं इस 32000 से 40000 साल पूरानी मूर्ति पर जो आर्किओलॉजिस्ट्स को साऊथ जर्मनी की एक दूर दराज की गुफा मे 20 मीटर दूर 1.2 मीटर नीचे ज़मीन में दबी मिली। इस मूर्ती ने दुनिया भर के शोधकर्ताओं को सोच मे डाल दिया है कि आखिर ये मूर्ति किसकी है ,किसने बनाई और ये यहाँ क्यों और कैसे है ? हो सकता है की जब हम आपको इस मूर्ति के बारे मे सारी बातें बताएँ तो आप भी सोच मे पड़ जाएँ!!!!!!
ये मूर्ति बेहद ही ख़ास खोज मानी जा रही है क्योंकि ये अब तक कि ढूंढी गयी दुनिया की सबसे पुरानी तराशी हुई मूर्ति है जो की 32000 से 40000 साल पुरानी है जिसका सिर शेर का है और शरीर इंसान के जैसा है, बिलकुल जैसा वर्णन हमारे भारतीय वेद और पुराणों में भगवान विष्णु के अवतार नरसिम्हा का मिलता है।
एक और बड़ी आश्चर्यजनक बात है और वो ये की ये मूर्ति गुफा कि ठीक उस जगह पर जमीन मे दबी मिली जहाँ दिन और रात मिलते हैं मतलब जहाँ रौशनी और अँधेरे का संगम होता है और हिन्दू पुराणों के अनुसार हिरण्यकश्यप को वरदान प्राप्त था की कोई भी उसका वध ना तो दिन मे और ना ही रात मे कर सकता है जिस कारण भगवान विष्णु उसका वध करने के लिए नरसिम्हा अवतार मे प्रकट हुए थे जब ना तो दिन था और ना ही रात थी,बल्कि दिन और रात दोनों मिल रहे थे जिस का मतलब होता है शाम का समय।
कहा जाता है की हाथी के दांत पर शिल्पकारी एशिया और भारत मे शुरू हुई थी और ये मूर्ति एक ऐसे हाथी के दांत से बनी है जो लाखों साल पहले विलुप्त हो चुके हैं और जिसके सबसे करीबी रिश्तेदार हाथी एशिया के होते हैं, तो सवाल उठता है की ये हाथी दांत की मूर्ति जर्मनी मे कैसे मिली???? क्या हज़ारों साल पहले हमारी धरती की संरचना कुछ ऎसी रही होगी जिसमे जर्मनी भारत के पास रहा होगा!!!!!!
ये मूर्ती अपनी खोज के दौरान शोधकर्ताओं को हर कदम पर चौकाती रही है फिर चाहे वो उसकी कार्बन डेटिंग हो या उसके मिलने की जगह या उसके हिन्दू भगवान विष्णु के अवतार नरसिम्हा से मेल खाना हो या फिर उसका ऐसी गुफा से मिलना जहाँ पहले खुदाई मे सिर्फ जानवरों के अवशेष मिले, इंसानों के होने का दूर दूर तक कोई नामों निशान नहीं मिला हो ।तो शोधकर्ता ये नहीं समझ पा रहे की इंसानों द्वारा बनायी गयी ऐसी मूर्ती कहाँ से और कैसे आयी।
इन सवालों के जवाब तो अबतक कोई भी वैज्ञानिक या इतिहासकार नहीं दे पाएं लेकिन अब इस अनसुलझी पहेली को जर्मनी के ulm museum में लोगों के देखने के लिए रख दिया गया है।
इस मूर्त्ति पर अभी शोध जारी है
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