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सोचिये कब, क्यों और कैसे बनी उनोकोटी की विशाल मूर्तियाँ: त्रिपुरा उनोकोटी

सोचिये कब, क्यों और कैसे बनी उनोकोटी की विशाल मूर्तियाँ: त्रिपुरा उनोकोटी. tripura, unokoti

घने जंगलों के बीच स्थित हैं 1 करोड़ से एक कम देवी देवता।

त्रिपुरा के राजधानी शहर अगरतला, से लगभग 125 किमी की दूरी पर स्थित है, उनोकोटी का पहाड़ी इलाका जो दूर-दूर तक बहुत घने जंगलों और दलदली इलाकों से भरा है। उनोकोटी लंबे समय से शोध का बड़ा विषय बना हुआ है, क्योंकि इस तरह जंगल की बीच जहां आसपास कोई बसावट नहीं है ,एक साथ इतनी मूर्तियों का निर्माण कैसे संभव हो पाया। "उनोकोटी" बंगाली शब्द से निकला है जिस का मतलब एक करोड़ से एक कम होता है ।यहाँ की स्थानीय मान्यता के अनुसार यह वो जगह है जहाँ से एक करोड़ देवी देवता काशी गए थे और रात होने पर वहीँ जंगलों में सुबह होने तक रुक गए और वहीं उनके शरीर भस्म हो गये,सिर्फ भगवन शिव ही आगे बड़े।

कहते हैं १ किलोमीटर की दायरे में ऐसी विशाल मूर्तियाँ हैं। उनोकोटी में दो तरह की मूर्तियाँ मिलती हैं, एक पत्थरों को काट कर बनाई गईं मूर्तियाँ, दूसरी पत्थरों पर उभरी हुई मूर्तियाँ। यहां ज्यादातर हिन्दू धर्म से जुड़ी प्रतिमाएं हैं, जिनमें भगवान शिव, देवी दुर्गा, भगवान विष्णु, और गणेश भगवान आदि की मूर्तियाँ हैं। इस स्थान के मध्य में भगवान शिव की एक विशाल प्रतिमा मौजूद है, जिन्हें उनाकोटेश्वर के नाम से जाना जाता है।

भगवान शिव की यह मूर्ति लगभग 30 फीट ऊंची बनी हुई है। इसके अलावा भगवान शिव की विशाल प्रतिमा का साथ दो अन्य मूर्तियाँ भी मौजूद हैं, जिनमें से एक माँ दुर्गा की मूर्ति है। साथ ही यहाँ तीन मूर्तियाँ नंदी की भी हैं। इस स्थान के मुख्य आकर्षणों में भगवान गणेश की अद्भुत मूर्तियाँ भी हैं, जिसमें गणेश जी की चार भुजाएँ और बाहर की तरफ निकले तीन दांत को दर्शाया गया है। भगवान गणेश की ऐसी मूर्ति बहुत ही दुर्लभ हैं , इसके अलावा यहां भगवान गणेश की चार दांत और आठ भुजाओं वाली दो और मूर्तियां भी हैं।

यहाँ एक सीता कुंड भी है जिसमे से निकलती जल की धारा को पवित्र माना गया है और लोग इसमें स्नान करने आते हैं । ये जगह किसने बनाई, किस काल में बनाई, इस बात का कोई सबूत नहीं है, लेकिन पुरातत्व विशेषज्ञों के मुताबिक़ उनोकोटी, एशिया का सबसे बड़ा "bas relief" है यह जगह अपने आप में एक विशाल मंदिर की तरह है और यहाँ आके वैसी ही शांति मिलती है जैसे किसी धार्मिक स्थल पर जाकर मिलती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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